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प्रस्तावः]
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स्थूलिभद्र-कथा। तं पुण काल-वसेणं दियंबरेहिं परिग्गहियं ॥ तत्थ ममाएसेणं अजिय-जिणिंदस्स मंदिरं तुंगं । दंडाहिव-अभएणं जसदेव-सुएण निम्मवियं ॥
इति आर्य-खपुटाचार्य-कथा ॥ तो राया बुहवग्गं विसजिउं दिवस-चरम-जामम्मि । अत्थाणी-मंडव-मंडणम्मि सिंहासणे ठाइ ॥ सामंत-मंति-मंडलिय-"""""पमुहाण दसणं देइ । विन्नत्तीओ तेसिं सुणइ कुणइ तह पडीयारं ॥ कय-निविवेय-जण-विम्हियाई करि-अंक-मल्ल-जुद्धाई। रजटिइ त्ति कइया वि पेच्छए छिन्नवंछो वि॥ अट्ठमि-चउसि-वजं पुणो वि भुंजइ दिण?मे भाए। कुसुमाइएहिं घर-चेइयाई अच्चेइ संझाए॥ निसि निविसिऊण पट्टे आरत्तिय-मंगलाई कारवइ । वारवहू-निवहेणं मागह-गण-गिजमाण-गुणो॥ तो निई काउमणो मयण-भुयंगम-विस-प्पसम-मंतं । संथुणइ थूलभद्द-प्पमुह-महामुणि-चरियमेवं ॥
पुरि चिठ्ठइ पाडलिपुत्त नामु, __ घण-कण-सुवन्न-रयणाभिरामु । तहिं नवमु नंद पालेइ रज्जु,
पडिवक्ख-महीहर-हलण-वज्जु ॥१॥ मुणिपत्त-कप्प-जल-सित्तु गत्तु,
बालत्तणि जसु रोगेहि चत्तु । तसु कप्पयमंतिहि वसिइओ,
सगडालु मंति निववक्खुभूओ ॥२॥ तसु थूलभद्दु सुओ आसि पढमु,
मयणु व्व मणोहर रुव परमु । जो जम्मदियहि देवयहिं वुत्तु,
इह होही चउद्दह-पुव्व-जुत्तु ॥ ३ ॥ सिरिउ त्ति विइजउ आसि पुत्तु,
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