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कुमारपालप्रति
गणगणेण वर-खज्ज - १ ज-भुज भरियाणि इंति मढं ॥ तं अच्छरियं दण तम्मि भत्तिं कुणंति सड्ढावि । ता आगंतुं संघस्स हरह ओभावणं एयं ॥ तं सोउं गुडसत्थाउ झत्ति भरुयच्छमागया गुरुणो । तेसिं तु पत्तगाणं पुरो ठिओ मत्तओ जाइ ॥ सो उण उवसगाणं गिहेसु पवरासणम्मि ठचिऊण । सरसस्स भरिज्जइ भोयणस्स सह सेस - पत्तेहिं ॥ गयणेण इंति सव्वाइं अन्नया सेय-वत्थ- पिहियाई । तम्मि दिणम्मि गुरूहिं विउब्विया अंतरम्मि सिला ॥ पत्ताणि तत्थ तो लग्गिऊण भग्गाई ताई सवाई | तो चेल्लएण नायं इहागया अज्ज-खउड त्ति ॥ तो चेल्लओ भएणं नट्टो बुडालए गया गुरुणो । ते संत्ता भिक्खूहि पडह पाएस बुद्धस्स ॥ भणियं आयरिएहिं सुडोदण-पुत्त ! एहि वंद ममं । तो निरतुं बुद्ध पडिओ पाए स सूरीण | तत्थ दुवारे थूलो सो भणिओ एहि पडसु पाएसु । तो झत्ति सो वि पडिओ अह उट्ठेहि त्ति संलत्तो ॥ अट्ठो ण उट्टि एसो एवं चिय संपयं पि सो अत्थि । भणिओ बुडो चिट्ठसु सट्टाणे एक-पासेण ॥ थक्को तहेव एसो इमेहिं जं नामिओ नियंठो सो । लोय तो पसिद्धा नियंठनाम त्ति ते गुरुणो ॥ एवं विज्ञासिद्ध- पभावओ देवया कयावेसं । चेयणमचेयणं वा करेइ मण - चिंतियं चिह्नं ॥ जं
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पुण मरणेण विणा जीवो पर देह संकमं कुणइ । नियय सरीरं मुत्तूण सव्वहा तन्न संभवइ ॥ इय विज्जा- माहष्पं अच्चन्भुयमज्ज - खउड- सूरीणं । दहूण वच्छराओ पडिवन्नो वीयराय-मयं ॥ ताराइ बुद्धदेवी मंदिरं तेण कारियं पुव्वं । आसन्न - - गिरिम्मि तओ भन्नइ ताराउरं ति इमो ॥ तेणेव तत्थ पच्छा भवणं सिद्धाइयाइ कारवियं ।
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[ पञ्चमः
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