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________________ कुमारपालप्रतिबोधे [पञ्चमः नय-विणय-परक्कम-बुद्धि-जुत्तु । तह जक्खा -पमुह पसिद्ध पत्त, मेहाइ गुणिहिं भइणीउ सत्त॥४॥ अह पत्तु कयाइ वसंतसमओ, संजणिय-सयल-जण-चित्त-पमओ। उल्लासिय-रुक्ख-पवाल-जाल, पसरंत-चारु-चच्चरि व्व मालु ॥१॥ जहिं वण-लय-पयडिय-कुसुम-वरिस, महु-कंत समागय जणियहरिस । पवमाण-चलिर-नव-पल्लवेहिं, नचंति नाइ कोमलकरहिं ॥२॥ नव-पल्लव-रत्त-असोअ-विडवि, महुलच्छिहि सउं परिणयणु घडवि । जहिं रेहहिं नाइ कुंसुभरत्त, वत्थेहिं नियंसिय सयलगत्त ॥३॥ हसइ व्व फुल्ल-मल्लिय-गणेहिं, नच्चइ व पवण-वेविर-वणेहिं । गायइ भमरावलि रविण नाइ, जो सयमवि मयणुम्मत्तु भाइ ॥४॥ घणमयणमहूसवि, पिजंतासवि, तहि वसंति जणचित्तहरि । कय-विसय पसंसिहिं, नीओ वयं सिहिं, थूलभद्द कोसाहि घरि ॥५॥ कणय-खंभिहिं नाइ कंदलिय, जहिं नाइ पल्लविय चीणवत्थ वित्थिय वियाणिहिं, नं कुसुमिय मुत्तियहि सव्वओ वि अवऊलठाणिहि, कंचणकलसिहि जणि फलिय सहइ लच्छिलयचित्त । कोसा वेसा पुव्वकयसुकय जलिण जं एव सित्त ॥ ६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001873
Book TitleKumarpal Pratibodh
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorJinvijay
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages564
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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