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________________ कुमारपालप्रतिबोधे [पञ्चमः उस्सप्पिणि अवसप्पिणि अणंत, हउँ वसि सहंतु दुह महंत ॥ ७८॥ अह कह वि सव्व-जण-निदिएसु, उप्पन्नउ दु-ति-चउरिदिएसु । हउं पाविवि पुण पुण जम्मु मरणु, चिरु तत्थ पत्तु दुह न हु सरणु ॥७९॥ पंचंदिउ थल-जल-नहयरेसु, हउं हुयउ किलिट्ठ-कलेवरेसु । सत्थेहि भिन्नु जालेहि रुडु, पुणुरुत्तु वहिउ वाहेहिं मुडु ॥ ८०॥ सीयायव-छुह-तिस-वाह-दाह-, वह-नक्क-वेह-अंकण-निरोह । लउडंकुस-आर-कस-प्पहार, हउँ विवसु सहाविउ वारवार ॥ ८१॥ तुम्ह दुचरियह, जगि विप्फुरियहं, नूण पभाविण हर्ड हूयउ। तिरियत्तु पवन्नउ, सुह-मइ-सुन्नओ, विविह-दुसह-दुह-संजुयओ ॥ ४२ ॥ जं अग्गि-वन्न-सूई हि विड्ड, समकालु लहइ दुहु सुह-समिडु । महं लड्डु वसंतिण गब्भवासि, किरि तासु अहु गुणु दुक्खरासि ॥ ८३॥ तह जोणि-जंत-पीलणु सहंतु, हउं कट्टिण गम्भह नीहरंतु । रोअणिवि असकर हीणसत्त, तसु कोडि लक्ख-गुणु दुक्खु पत्तु ॥ ८४ ॥ बालत्तणु असुइ विलित्त-देहु, . दुहकर दसणुग्गम कन्न-वेहु । चिंतंतह सव्व-विवेय-रहिउ, मह हिय होइ उकंप-सहिउ ॥ ८५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001873
Book TitleKumarpal Pratibodh
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorJinvijay
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages564
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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