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________________ प्रस्तावः] ४३३ जीव-मन:-करण-संलाप-कथा। जं वज-जलण-जालोलि-तत्त, मई लोहमइय महिलावसत्त । जंमहि हिमु कुसई खंड करिवि, उढिओ खणेण पारउ व्व मिलिवि ॥ ७१ ॥ जं कुंभिपाकि पक्कओ परधु, जं चंड-तुंड-पक्खीहि खडु । जं तिल व निपीलिउ लोह-जंति, __ जं वसहि व वाहिउ भरि महंति ॥ ७२ ॥ अच्छोडिओ जं सिचउ व्व सिलहि, करवत्ति भित्तु जं कंठ कयलहिं । जं तलेउ कहल्लिहिं पप्पुडु व्व, सत्थेहि छिन्नु जं चिन्भड व्व ॥ ७३ ॥ असिवत्त वणिज आउदेहि, असि-सव्वल-सेल्ल-सिलीमुहेहि। जम-जीह-समेहि रडंतु विरसु, सव्वंगु वियारिउ दीणु विवसु ॥७४॥ तं तुम्ह पसाइण, महं सविसाइण, सत्तिहि नरएहि भुत्तु दुहु। जहि तिलतुसमत्तु... ...........वि ___ वेयण विहुर हं नत्थि सुहु ॥ ७५ ॥ तिरियत्तणि जं दुह-चकवालु, मई दूसह पत्तु अणंत-कालु। तं न कुणइ कस्स मुणिज्जमाणु, उकंपु खणिण मणि अप्पमाणु ॥ ७६ ॥ उस्सप्पिणि तह अवसप्पिणीउ, नीसंख सहंतउ ताउ सीओ। पत्तेउ वसिउ हउं दारुणेसु, पुढवी-जल-जलण-समीरणेसु ॥ ७७॥ पत्तेय-अणंत-वणसईसु, मोहोदय-दूसिय-दुग्गईसु। २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001873
Book TitleKumarpal Pratibodh
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorJinvijay
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages564
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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