SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३० कुमारपालप्रतिबोधे [पञ्चम जइ पुण रुद्धे वि मणे इंदियमेकं पि कुणइ वावारं । दोसेण तस्स ता मज्झ निग्गहो देव ! कायव्वो॥५०॥ जेव मंकडु चल सहावेण, अन्नन्न-रुक्खिहि रमइ, ___ मणुवि तेवि अन्नन्न-विसइहि, एकत्थ बंधइ न रइ, नरइ नेइ पई पहु कुवरि इहि, तह सव्वहं विसयहं जइवि निच्चु करइ अणुवित्ति । रक्खसु जिंव दारुणु तह वि एहु न पावइ तित्ति ॥५१॥ जं व दिन्नउं अम्ह कुल दोसु, मण-मंतिण दुम्मुहिण, भणिवि डिंभ विसयाहिलासह, तं दूसणु अम्ह न हु, पहु अच्छु सामिउ वि वासह, जं सो वि हु अम्हह जण संकेएण मणस्स । करइ रायकेसरि कुमर रज्जुह चिंत अवस्स ॥५२॥ पहु ! अप्पह नरिंदाणं दुम्मंती दूसए गुण-कलावं । एकं पि तुंबिणीए बीयं नासेइ गुलभारं ॥५३ ॥ इय भणियइ फरिसिण-इंदिएण, मणु जंपइ कंपंतउ भएण। अवराहु को वि न हुं इंदियाण, नहु मज्झ वि वुज्झसु निव-पहाण ! ॥५४॥ किं पुण जि पुत्वजम्मेसु अहिय, पई देव ! सुहासुह-कम्म-विहिय । सुह- दुक्ख-दंड तुह दिति ताई, अवराण उवरि रुसेसि काई ? ॥५५॥ सव्वो वि पुव-भव-निम्मियाण, कम्महं विवागु पावइ नियाण । अवराह-गुणेसु निमित्तमत्तु, परु होइ जिणागमि एहु तत्तु ॥५६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001873
Book TitleKumarpal Pratibodh
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorJinvijay
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages564
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy