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कुमारपालप्रतिबोधे
तुज्झ दुक्ख भवि भवि अणिट्ठिय, जइ पित्तिजसि मह न तउ बंधिवि एकु घरेसु । तिण विणु तसु वावारु जइ ता मह दूसणु देसु ॥२७॥ न तए कुल-सील-गुणा परिक्खिया किं च फरिसणाईण। अपरिक्खिय-कुल-सीलाहि दिति पहुणो दुहं भिचा ॥ २८ ॥
ता वियक्खण देव पुच्छेसु, ___ कुलसीलगुण इंदियहं, बुडिदेवि वरबंधु विमरसु, __ तह दुईउ पयरिसु कुमरु, जह विवेउ विप्फुरइ असरिसु ॥ २९ ॥ __ तो समागय तत्थ ते वि, पणमंत मत्थय नमिवि,
महिनिविठ्ठ तो अप्पराइण, पभणेवि महुरक्खरिहि,
___ आसणंति गरुयाणुरायण, पुच्छइ एयहं पंचह वि कुलसीलाइ कहेह। ता विमरिसु जोडेवि कर साहइ सामि ! सुणेह ॥ ३०॥ पह! अत्थि चित्त-वित्ती महाडवी वियड-आवयाइन्ना । पयडिय-कु-जम्म-लक्खा चोजं अवराह-संजुत्ता ॥३१॥ तत्थ महामोहो नाम नरवई विहिय-भुवण-संखोहो । नाणावरणीय-प्पमुह-सत्त-मंडलिय-कय-सोहो ॥ ३२॥ अद्धासण-संलीणा तस्स महामूढया महादेवी। तीइ तइलोक-दमणिक-विक्कमा नंदणा दुन्नि ॥ ३३ ॥ राजस-चित्तस्स पुरस्स सामिओ राग-केसरी पढमो। तामस-चित्त-पुर-पहू दोस-गयंदो पुण दुइज्जो ॥३४॥ मिच्छा-दंसण-नामेण मंती मोह-नरिंदस्स चिंतए रजं । मय-कोह-लोह-मच्छर-वम्मह-पमुहा भडा इत्थ ॥ ३५ ॥ अह तस्स चित्त-विक्खेव-मंडवे तन्हवेइ उच्छंगे। मोह-निवस्स विवजास-आसणे संनिविट्ठस्स ॥ ३६॥ मिच्छा-दसण-नामेण मंतिणा सविनएण विन्नत्तं ।
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