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कुमारपालप्रतिबोधे
[पश्चमः
चित्ति वहुदृइ धम्म-गुणु वइ पसम-सिणेहु। जीव-मणं दिय-संलवणु तं बुह-यण हु सुणेहु ॥ १॥
__ अस्थि पट्टणु देहु नामेण, लायन्न-लच्छिहि निलओ,
आयु-कम्म-पायार-संगओ, सुह-दुक्ख-छुह-तिस-हरिस
सोय-पमुह-लोय-संगओ. नाणाविह-नाडी-सरणि-भमिर-समीरतभारु । भूरिधम्म-पयडिय-महिमु सुपरिठिय-नव-वारु ॥२॥ तत्थ नरिंदो अप्पा बहुविह-भोगोवभोग-त"त्थो । बुद्धि-महादेवीए सहिओ रजं कुणइ निच्चं ॥ ३॥
तासु चिट्ठइ मणु महामंति, तणि अप्पु समु मन्नियउ,
जो महल्ल-कोसल्ल-भायणु, बहु-पसर-संपत्त-जमु,
रज-कज-चिंतण-परायणु, तह पंचिंदिय-पयड-गुण फरिसण-रसण-ग्घाण-। लोयण-सवण-निओ कर अप्पह पंच पहाण ॥४॥
अह कया वि हु लहिवि पत्थावु, तसु अप्पह समुहओ,
मणिण वुत्तु कर बेवि जोडिउ, जः कवि अन्नाण घसिखिवहिं,
दुक्खि बहु जीव-कोडिओ, एकह एयह दट्ठयह निय-जीयह कजेण । ताहं अहम्मह निम्मविओ किं जीविउ वजेण ॥५॥
एउ निसुणिवि अप्प न खाहु, साणक्खु तक्खणि भणइ, __ अइ पसाई मुहु मज्झ मत्तओ, निय-जोग्गय न हु मुणहि,
नूण मूढ परि सुचवंतओ,
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