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मद्यपानवर्ज
नम् ।
मद्यपानवर्जनम् ।
वेसा - वसणासत्तो तिवग्ग- मूलं विणासिउं अत्थं । पच्छा पच्छायावेण लहइ सोयं असोओ व्व ॥ ( अशोककथानकमत्रानुसन्धेयम् )
रन्ना भणियं - भयवं ! वेसासु मणं अहं पि न करिस्सं । गुरुणा भणियं - भवउ उत्तम पुरिसस्स जुत्तमिणं ॥ संपयं मज्ज-वसण- दोसे सुणसु
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नई गाइ पसइ पणमइ परिभमइ मुयइ वपि । तूसइ रूसइ निक्कारणं पि महरा - मउम्मतो ||
जणणि पिपिययमं पिययमं पि जणणि जणो विभावतो । मइरा-मएण मत्तो गम्मागम्मं न याणेइ || नहु अप्प-पर-विसेसं वियाणए मज्ज-पाण- मूढ-मणो । बहु मन्नइ अप्पाणं पहुं पि निव्भत्थए जेण ॥ वयणे पसारिए साया विवरब्भमेण मुत्तंति । पह-पडिय-सवस्स व दुरप्पणो मज्ज-मत्तस्स ॥ धमत्थ-काम-fari विहणिय- मइ कित्ति - कंति-मज्जायं । मज्जं सव्वेसि पि हु भवणं दोसाण किं बहुणा ? ॥ जं जायवा स-सयणा स-परियणा स-विहवा स नयरा य । निश्वं सुरा-पसत्ता खयं गया तं जए पयडं ॥
( यादवकथानकमत्रानुसन्धेयम् ) एवं नरिंद ! जाओ मज्जाओ जायवाण सव्व क्खओ । तारन्ना नियरज्जे मज्जपवित्ती वि पडिसिद्धा ॥ इहि नरिंद ! निसुणसु कहिज्जमाणं मए समासेणं । वसणाण सिरो- रयणं व सत्तमं चोरियावसणं ॥ पर- दव्व-हरण-पाव दुमस्स धण-हरण-मारणाईणि । वसणाई कुसुम-नियरो नारय- दुक्खाई फलरिद्धी ॥ जगतो सुत्तो वा न लहइ सुक्खं दिणे निसाए वा । संका-छुरियाए छिमाण-हियओ धुवं चोरो ॥ जं चोरियाए दुक्खं उब्बंधण - सूलरोवण- मुहं । एत्थ विलहेइ जीवो तं सव्व जणस्स पञ्चक्खं ॥ दोहग्गमं गच्छेयं पराभवं विभव समन्नं पि । जं पुण परत्थ पावर पाणी तं केत्तियं कहिमो ॥ हरिण परस्स धणं कयाणुतावो समप्पए जइ वि । तह विलहेइ दुक्खं जीवो वरुणो व परलोए ॥
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