________________
प्रस्तावः]
लोभविपाके सागर-कथा। भजाइ मरंतीए तत्तो नागेण संलसं ॥ लेक्खइ चोक्खइ जो मरइ निय-दुच्चरिय-वसेण । सुंठि-सुंचलु किं करेइ तसु दिन्नं अवरेण ॥ इय नागिणीए चरियं पवंच-बहुलं पलोइउं नागो। वेरग्ग-मग्ग-लग्गो आढत्तो चिंतिउं एवं ॥ क्रूड-कुडुंब-कुडीओ विवेय-मायंड-मेह-मालाओ। को महइ वाल-वालुंकि-वाल-कुडिलाओ महिलाओ॥ रज्जइ कर-चलणाहर-दलेसु तरुणीण निच्च-रत्तेसु । खण-रत्त-विरत्तं पुण मूढो मुणइ मणं तासिं ॥ मयण-धणु-लटि-वंकासु तूसए कामिणीण भमुहासु । ताण न याणइ मूढो चित्तं तु सहस्स-गुण-चंकं॥ तुच्छ मज्झं कढिणं थण-स्थलं चंचलं च नयण-जुयं । पर-मोहत्थं महिला पयडंति न एरिसं तुमणं ॥ तुंग-थण-त्थल-विसमे असंभवं रमणि-देह-मरु-देसे । सेवेइ संवरं जो पीडिजइ सो न तण्हाए ॥ एवं संवेय-परो विसय-विरत्तो वि विसय-मइ-मुत्तो। नागो नाण-दिवागर-गुरु-पासे सुणइ जिण-धम्म ॥ तो कवड-चत्त-चित्तो चारित्तं गेण्हि तवं काउं। समए मरिऊण गओ सग्गं मोक्खं च सो लहिही ॥
इति मायायां नागिनी-कथा ॥ जो कोह-माण-माया-परिहार-परो वि वजइ न लोहं । पोओ व्व सागरे सो भवम्मि बुड्डइ कु-कम्म-गुरू॥ ससि-कर-धवला वि गुणा निय-आसय-वाह-कारए लोहे। आवदंति जल-कणा लोहम्मि व जलण-संसत्ते ॥ इह लोयम्मि किलेसे लहिलं लोभाउ सागरो गरुए।
पर-लोए संपत्तो दुग्गइ-दुक्खाई तिक्खाई ॥ तं जहा
अत्थि भरहम्मि नयरी मिहिला महिल व्व मणहरागारा। पायारेण वरेणं परियरिया जा परागम्मा ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org