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कुमारपालप्रतिबोधे
[पञ्चमः
छलिओ मयण-पिसाएण तेण जाओ सि अस्सत्थो । हसि राय-सुएणं भणियं भयवइ ! कहं मुणसि एयं ? । अहवा होइ फुडं दिव्व-नाण-नयणो तवस्सि-जणो॥ सत्थत्तणे उवायं चिंतसु सा भणइ चिंतिओच्चेय । रवि-वारे रवि-भवणे गच्छसु जेणिच्छियं लहसि ॥ अह पत्ता सेटि-सुया सयण-जुया रविगिहम्मि रवि-पूयं । काउं विनिगच्छंती राय-सुएणं भुए गहिया ॥ तो पुकरियमिमीए छिवियाए मज्झ अन्न-पुरिसेण । अग्गि विणा न सुहि त्ति झडित्ति कड्ढेह कहाई॥ पिउणा नियत्तिया सा कहं पि तो आगया नियं गेहं । पव्वाइयं पयंपइ तं आणसु कह वि रयणीए॥ तहेव विहियं तीए जाओ दुण्हं पि संगमो। 'षट्र-कर्णो भिद्यते मन्त्र इय तीए विचिंतित्रं ॥ पव्वाइयं पसुत्तं तत्तो वत्थाइएहिं पिहिऊण । भवणं पलीवियं निग्गयाइं दुन्नि वि निहुय-निहुयं ॥ पव्वाइया निरग्गल-मइ-प्पवंचा वि वंचिया तीए। कवडकडाण कय-दुक्कडाण नणु किच्चिरं कुसलं ॥ तीए सह राय-सुओ गओ सभवणम्मि अह गिहे दडूं। पव्वाइगं सुयं चिय मन्नंतो विलवए सेट्ठी ॥ हा पुत्ति ! तए पर-पुरिस-फरिस-विहुराए मग्गिओ अग्गी। दिन्ना न मए सयमेव साहिओ तह वि सो तुमए॥ तुमए चिय एकाए पुत्ति ! मुहं मज्झ उज्जलं विहियं । रमणीण मंडणं जं सीलं तुह चेव तं दिढ ॥ तीए मय-किच्चाई काउं अट्ठीणि खिवइ सो तित्थे । अह कइवय-दियएहिं राय-सुयस्स वि धणं तुढें ॥ सो भणइ पिए ! जामो निय-देसं तं भणेइ सेटि-सुया। मा कुरु एवं इत्थेव पूरिही सव्वमवि सेट्ठी ॥ कहियं च तस्स कन्ने तीए एवं तुमं करेसु त्ति । तो गंतुं राय-सुओ हहे सिर्हि भणइ एवं ॥ व्वेसु देह मह पट्ट-साडियं तेण अप्पिया साडी।
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