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प्रस्ताव: 1
मानविपाके गोधन-कथा । इच्चाइ-मयट्ठाणेहि विनडिओ निट्ठरेहि वयणेहि । लोयं अहिक्खिवंतो सो बंधइ नीय-गुत्ताई ॥ मरिऊण रासहो सो संजाओ भार-वहण-खिन्नंगो । जीयं गमिऊण मओ सुणहो जाओ गओ पोढिं ॥ असुई चि य भक्खंतो मरि सो गड्ड-सूयरो जाओ। पंक-लुलिओ नियाउं खविउं सो छगलगो जाओ॥ संकर-सुएण किणिउं हणिओ सो संकरस्स मय-कज्जे । तत्तो जाओ करहो कयाइ गुरु-भार-अक्रतो ॥ पडिऊण दुत्तडीए सो वेयण-विहुर-विग्गहो मरिओ। चंपापुरीइ माहण-गिहम्मि दासो समुप्पन्नो ॥ सो मूयओ वराओ कयाइ मासोववास-पारणए । भिक्खा-कए पविट्ठो समणो माहण-गिहे तम्मि ॥ असुडो अफरिसणिज्जो जइ वि इमो तह वि तव-पहाणु त्ति । मन्नंतीए सो माहणीए पडिलाभिओ सम्मं ॥ मह सामिणी कयत्था जा दाणं देइ साहुणो एवं। इय अणुमोयंतेणं दासेण उवजियं सुकयं ॥ सुकरण तेण दासो मरिउं जाओ सि वच्छ ! मह पुत्तो। तं पुण पुव्व-मय-फलं [जं] चंडालाण मिलिओ सि ॥ मरिऊण माहणी सा जाया मुणिदाणओ इमा सगुणा । समण-दुगंछाए पुण चंडाल-कुलम्मि उप्पन्ना ॥ तो सुमरिय पुव्वभवो पयंपए गोधणो सह पियाए। अणुभूयं माण-फलं अओ परं तं न काहामि ।। तत्तो इमिणा सम्मत्त-पुव्वगं सावगत्तणं गहियं । गुरु-पासे गरहंतेण माण-जणियं पुरा-पावं ॥ तं पालिऊण सम्मं समाहिणा अणसणेण मरिऊण । सोहम्मे दो वि सुरा ति-पल्ल-परमाउणो जाया ॥
इति मानविपाके गोधन-कथा ॥
धम्म-वण-जलण-जाला मोह-महा-मयगलाण [जा साला । कुगइ-बहू-वर-माला माया सुह-मइ-हरण-हाला ॥
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