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प्रस्तावः ]
मानविपाके गोधन-कथा।
बंभंड-मंडवो जस्स कित्ति-वल्लीइ संछन्नो॥ तस्सासि पवर-बुद्धी समत्थ-सत्थत्थ-वित्थर-पवीणो । कय-सयल-कज-रज्जो मंती नामेण गोविंदो॥ सावित्ति व्व विरंचिस्स वल्लहा तस्स गोमई गिहिणी। तेसिं पगिट्ठ-रूवो संजाओ गोधणो पुत्तो॥ समए पढाविओ सो वागरणाईणि सयल-सत्थाई । कलहो व्व करिंदत्तं कमेण तारुन्नमारूढो ॥ अह जलहिणो व्व वेला फुरिया चित्तम्मि तस्स दप्प-कला । अहमेव जाइ-कुल-रूव-नाण-पमुहे हि पवरो त्ति ॥ जो को वि अस्थि सत्थत्थ-पारगो सो मए समं वायं । कुणउ त्ति भणंतो सो पुरम्मि पुग्गाई वाएइ ॥ नरनाह-मंति-पुत्तो त्ति तेण सह को वि कुणइ न विवायं । तो गाढं सो गहिओ अहमेव बुद्धोत्ति गव्वेण ॥ सो पिउणा सिक्खविओ वच्छ ! सगन्नस्स अणुचिओ गव्वो । तुच्छाण फुरइ चित्ते पायं अत्तुक्करिस-चुड्डी ॥ जं स-गुण-गव्व-गहिलो तुमं न गरुए वि नमसि तमजुत्तं । पुरिसस्स नम्मया नम्मय व्व उद्यावहा जम्हा ॥ गुणिणो जणस्स गव्वो गरुओ हरिणो ससिस्स व कलंको। ता पुत्त ! तं विमुत्तुं वसु सप्पुरिस-मग्गेण ॥ पर-दूसणं न जंपइ थेवं पि गुणं परस्स वजरइ। न कुणइ परे असूयं न परं परिहवइ सप्पुरिसो॥ भरिओ वि न मज्जइ सायरो व्व फलिओ वि नमइ रुक्खो व । पुन्नो वि चयइ चंदो व्व कुडिल-भावं महा-पुरिसो॥ सो पिउणा सिक्खविओ वि निरो मद्दवं न पडिवन्नो।
परिक्कमिओ वि बहुसो काओ किं मरगओ होइ ? ॥ तओ सो पयंड-पंडिच्च-दप्प-दुपिच्छो मए इमम्मि नयरे सव्वे विबुहा गहाविया मोणं, नयरंतरेसु वि एवं करेमि त्ति चिंतंतो निग्गओ निय-नयरीओ। अवरावर-वियक्खणेहि सह वयण-कलहं कुणंतो परिन्भमिओ भूरिदेसेसु। कयाइ केणाऽवि कहियं तस्स, जहा, सीह-गुहा-पल्ली-सामिणो माणभंग-मायंगस्स धूया पगिट्ट-रूवा निय-छइल्लत्तणओ उत्ताणा भणइ नत्थि को वि
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