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कुमारपालप्रतिबोधे ..
[चतुर्थः
अरिणो कहावियमिणं झत्ति तुमं होसु रण-सज्जो ॥ तेणावि कया पगुणा वर-कणय-गुडा विचित्त-चिंध-जुया। करिणो सुवन्न-गिरिणो व्व जंगमा कप्पतरु-चलिया ॥ सज्जीकया रहवरा जय-लच्छि-चलंत-केलि-निलय व्व । पक्खरिया तुरय-गणा गहिय-सरीरा समीर व्व ॥ . सन्नद्धा जम-दूय व्व विविह-पहरण-भयंकरा सुहडा । इय चउरंग-दलेणं नरसिंहो उढिओ समरे ॥ अणुमग्ग-विलग्गेणं सामंत-प्पमुह-सुहड-वग्गेणं । कंठीरवमारुहिउं कुमरो पुरओ ठिओ तस्स ॥ कंठीरवेण पुच्छ-च्छडाइ तह ताडियं धरणि-पिटं । कय-पलय-काल-संकं ववहरिउं जह समाढतं ॥ तुझंत-मूल-बंधा पडिया फल-कुसुम-सालिणो तरुणो। वजेण हयाई पिव तुटाई गिरीण सिहराई ॥ किं फुटं बंभंडं पडिओ गयणाउ विज्जु-दंडो वा । इय संकाओ सयलं सत्तु-बलं आउलं जायं ॥ तत्तो सीहेण कओ गिरि-गुह-पडि-सह-भीसणो सद्दो। कप्पंत-काल-गजंत-मेह-निग्घोस-दुव्विसहो ॥ हणिउं व मयंकमयं उप्पडइ खणं नहंगणे सीहो । पुण पडइ कुलिस-निहुर-कम-भर-निद्दलिय-महिवठ्ठो॥ तत्तो नरसिंह-निवस्स कुंजरा सिंह-भय-विहुर-हियया। अवगणिय-महामत्ता मत्ता वि पलाइया झत्ति ॥ भय-वसओ अवगणित्रं वग्गाओ महीइ आसवार-भडा। उल्लालिऊण खित्ता तुरएहिं रएण नट्टेहिं ॥ सुहडाण पहरणाई भय-वस-कंपंत-पाणि-पायाणं ॥ पडियाइं पायवाण व पवणाय-पक्क-पत्ताइं॥ इय नासंतं सिन्नं दहण भयाओ सो वि नरसिंहो। निय-हत्थि संठविउं कहं पि थक्को रणे एको ॥ नरसिंह-हत्थि-कुंभ-स्थलम्मि चडिओ हरी वि उप्पइउं । तो भूमि-निहिय-दसणो सज्झ-विहुरो ठिओ हत्थी ॥ भय-वस वियलंत-समत्त-पहरणो मुक्क-विकमुक्करिसो।
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