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प्रस्तावः]
पौषंधव्रते रणसूर-कथा । मरण-कय-ऽज्झवसाओ विन्नत्तो मंतिणा निवई ॥ देव ! न जुत्तं तुम्हाणं एरिसं सोय-करणमणवरयं । पहुणो वि चिंतयाए जेण विसीयइ जगं सव्वं ॥ सामिम्मि विसन्न-मणे को अन्नो हरिस-
निभरो भमइ । मेहच्छन्ने सूरे अंधारिजइन निं भुवणं? ॥ इय जा जंपइ मंती ता वायस-सर-वियक्खण-नरेण । इक्केण इमं भणिओ राया वायस-सरं सोउं ॥ देव ! इमो महुर-सरो वासंतो वायसो कहइ एवं । तुह देवी-संजोगो होही उत्तर-दिसि-गयस्स ॥ ता अविलंबं कीरउ पयाणगं देव ! उत्तर-दिसाए। तुह रत्त-पंच-मज्झे जेण पिया-संगमो होइ ॥ तो भणियममच्चेणं देव ! इमो दिट्ठ-पच्चओ पुरिसो। सउण-बलेणं जं किं पि जंपए होइ तं सव्वं ॥ इय सोऊण नरिंदो सहसा पत्तो अमंगाणंदं । चउरंग-चमू-कलिओ चलिओ उत्तर-दिसा-समुहं ॥ सो खुद्ध-मुद्ध-हरिणं-ऽगणाण दण लोयण-विलासे। देवीइ दंसिया किं इमाण एए त्ति चिंतंतो ॥ मोर-कलावा देवीइ केसपासो विनत्ति(?) मन्नतो। देवी-वर-हसिय-सिया दुम-कुसुम-भर त्ति भासंतो॥ देवी-कर-चलणाणं सहोयरा पल्लव त्ति तुहंतो। सुह-सउण-दाहिणंग-प्फुरणेहिं दु-गुणि-उच्छाहो ॥ पंच पयाणाई गओ पंचम-दियहे चउद्दसिं मुणिउं । सेन्नस्स रक्खणत्थं आइसिउं सुहड-संघायं ॥ आसन्न-धणंजय-जक्ख-मंदिरे निसिमुहम्मि गंतूण । भूमि पमजिउं पत्थिवेण पोसह-वयं गहियं ॥ कुलिसाऽऽहय-कुल-पव्वय-सद्द-रउद्दो कओ निसीहम्मि । जक्खेण अहहासो निव-सत्त-परिक्खण-निमित्तं ॥ सूराणं पि मणु-कंप-कारओ कायराण पाण-हरो। सत्त-पवरेण रन्ना बालय-हासो व्व सो गणिओ॥ तत्तो कवाल-कत्तिय-भीम-करा पललक-चलण-पहाणा। गल-कलिय-कसिण-सप्पा पयंसिया काल-वेयाला ॥
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