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प्रस्तावः
देशावकासिकवते पवनंजय-कथा । मिलिओ लोगो वोत्तूण नाय-मग्गं नियत्तो सो॥ कुल-रूव-कला-जोव्वण-धण-निव-सम्माण-दाण-पमुहेहिं । नय-कारणेहिं विवसा गेण्हंति न दो वि ते सिक्खं ॥ तह थक्केहिं रहेहिं रुद्धा लोयाण निग्गम-पवेसा। ते सुणिय-वइयरेहिं भणिया जणएहिं आगंतुं ॥ भो ! किं न कुग्गह मिणं मेल्लह जं एग-ठाण-वासीणं । सयणाणं उवयारीण अणुचियं जुद्धमन्नोन्नं ॥ निय-मंदिरेसु वचह रहे परावत्तिऊण जइ तुभे। ता को धण-क्ख ओ किं वसणं को वा कुल-कलंको ? ॥ अविमरिसियकारीणं खत्तिय-कुल-संभवा अभिमाणो। काउं जुजइ एसो, न दीहदंसीण वणियाणं ॥ एवं पन्नविएहि वि तेहिं न मुक्को दुरग्गहो कह वि । तो अविणीए पुत्ते मुणिउं गेहं गया जणया ॥ अह नाय-वइयरेणं नरवइणा पेसिया पहाण-नरा। कुग्गह-गहिले 8 सेठि-सुए तेहि भणियमिणं ॥ भो! पुव्व-पुरिस-विढविय-धणंऽध-मइणो मयं किमुव्वहह । जं न सुणह नय-मग्गं अवगणह गुरुवएसं च ॥ अत्तकरिसो जइ अत्थि तुम्ह गंतूण ता इओ चेव । बाहु-सहाया देसंऽतरम्मि विहवजणं कुणह ।। जो विढविय-बहु-व्वो एही वरिसेण तुम्ह मज्झाओ। अणिवारिय-दाणेणं च अस्थिणो सुत्थिए काही॥ सो चिय वच्चउ अख़लिय-रहो परावत्तिऊण इयर-रहं । तं ते तह त्ति पडिवज्जिऊण देसंतरेसु गया ॥ इमिणा कमेण गेहाउ निग्गंतुं नव-धणजणं काउं । इय तुहमणो दाहिण-दिसाइ पवणंजओ चलिओ॥ पुव्व-कय-सुकय-वसओ सो पत्तो पुंडरीघ-तित्थम्मि । तत्थऽत्थि हय-विवक्खो वर-जक्खो पुंडरीयक्खो॥ अन्न-सुरेसु न चक् पि खिवइ पवणंजओ जिणं मुत्तु । तह वि कुतुहल-वसओ जक्व हरं टुमाढत्तो ॥ अह तत्थ सत्थवाहो पहूय-लोयावलोयणऽक्खित्तो ।
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