________________
३५२
[ चतुर्थः
कुमारपालप्रतिबोघे मणहर-मुत्ती वि तुमं पडिवन्नो दुकरं दिक्खं ॥ मुणिणा भणियं सुण, इत्थ आसि नयरे गुणधरो वणिओ। वरुण त्ति तस्स जणणी कुडिल-मणा गोमई गिहिणी ॥ न सुहाइ गोमईए सासू तो चिंतए वहू एवं । को सो होज उवाओ जेण इमं नेमि पंचत्तं ॥ पइ-पुरओ जंपइ सासुयाइ दोसे वहू असंते वि । सो पियइ पाणियं तेत्तियं जेत्तियं भणइ घरिणी ॥ भणिओ सो जणणीए जणणिं दुलह त्ति मावमन्नेसु । सो मग्गइ दोवि धणेण लहइ घरणिं न उण जणणिं ॥ तह वि न मन्नइ जणणिं गुणधरो केवलं घरिणि-रत्तो। भणिया जणणीए वहू विरमसु मह कठ्ठ-गोहूमे ॥ भणिउं वहू इमाए काउं बहु मोयगाइ-पक्कन्न । दाहं तुह गोहूमे पुत्तो कहाई पुण दाही ॥ कहियं पइणो तीए जणणी वुड त्ति महइ कट्ठाई। तेणुत्तं किमजुत्तं विणोसहं वाहि-विगमो त्ति ॥ भणिया अणेण जणणी माए कट्ठाई मग्गसि तुमं किं । कूडमिणं वहुयाए एवं होउ त्ति कलिऊण ॥ सा भणइ वच्छ ! एवं अन्न-दिणे तेण घरिणि-सहिएण । नीया जणणी पिउवणमत्थमिओ दिणयरो ताव ॥ सेसो जणो नियत्तो इमेहिं दोहिं पि विरइया चियगा। खित्ता य तत्थ जणणी तावग्गी नत्थि वीसरिओ॥ भणिया गुणधरेणं गिहिणी गेहाउ अग्गिमाणेसु । सा भणइ गिहं जंती इह चिढ़ती य बीहेमि ॥ तो दोवि गयाइँ गिहं मरामि किमहं ति चिंति जणणी । मुत्तूण चियं खिविउं अणाह-मडयं तहिं किं पि॥ सयमारूढा रुक्खं गुणधरो गोमई य आगंतुं । दहिऊण चियं गेहं गयाइं दुन्निवि पहिहाई ॥ मणि-कणय-भूसणाई मुसिऊण पुराउ आगया तत्थ । चोरा दिव्व-वलेणं जणणी जत्थथि तरु-चडिया ॥ ते विभजिउं पया भणिया जणणीइ देह भागं मे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org