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प्रस्तावः]
दिग्बते सुबंधु-कथा । रव-भरिय-सयल-दिस-चकवाल । नीसेस-जगत्तय-विजय-सज्जु __ जंपति व मयण-नरिंद-रज्जु॥ जहिं रत्त-सहहिं कुसुमिय-पलास ___ नं फुट्टए पहिय-गण-हिययमास । सहयारिहि रेहहि मंजरीओ
नं मयण-जलण-जालावलीओ। जहिं मलय-समीरण-हल्लिरेहिं
नं नच्चइ लय-पल्लव-करेहिं । परहुय-रवु पसरइ काणणेसु
नं माणिणि-मय-चाओवएसु ॥ इय मयण-महा-महि-लोय-सहावहि भुवणि पयइ महु समइ। कय इत्थी-सस्थिहिं अत्थ-समस्थिहिं कीलण-थुवण-गमणमइ ।।
अधण त्ति वसुमई पुण पारडा रोविजं विसन्न-मणा। किं रोयसि त्ति पुठ्ठा सुबंधुणा तीइ कहियमिणं ॥ वर-वत्थ-नियत्थाओ रयणालंकार-मंडियंगीओ। अन्न-रमणीओ माणंति अज्ज मयणूसवं नाह !॥ अणलंकिया कुवत्था अहं तु ल जामि ताण मज्झम्मि । तत्तो करेमि कहमूसवं ति रोयामि दीण-मणा ॥ तत्तो सुबंधुणा सा भणिया मह परिभवो पिए एसो। संपइ तुमं परिचय संतावं धरसु धीरत्तं ॥ विवरं पिपविसि रोहणं पि खणिउं नहं पि आरुहियं । जलहिं पि लंघिउ भमडियं च देसंतराइं पि॥ विढविय-बहूय-बिहवो मणोरहा पूरणं तुह करिस्सं । किं तेण जीविएण हि उवजुज्जइ जं न पियकजे ॥ इय भणिऊण पहाए सुबंधुणा निग्गएण गेहाओ। पुर-परिसरम्मि दिट्ठो मणपज्जव-संगओ समणो ।। धम्म-कहं कुणमाणं जणाण तं पणमिउं सुबंधू वि। तस्स पुरओ निसन्नो कयंजली बोत्तुमाढतो॥ भयवं ! किं ते वेरग्ग-कारणं जेण जुव्वण-भरे वि ।
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