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[ चतुर्थः
कुमारपालप्रतिबोधे दससु दिसासुं जं सयल-सत्त-संताण-ताण-कय-मइणो । गमण-परिमाण-करणं गुणव्वयं विति तं पढमं ॥ जीवो धणलोभ-ग्गह-गहिय-मणो जत्थ जत्थ संचरइ । विद्दवइ पाणिणो तत्थ तत्थ तत्तायपिंडोव्व ॥ संतोस-पहाण-मणो दिसासु जो कुणइ गमण-परिमाणं ।
सो पावइ कल्लाणं इत्थवि जम्मे सुबंधु व्व ॥ तं जहाजंबू-जंबीर-कयंब-अंब-निउरंब-बंधुरारामा । जंबुद्दीवे भरहे कोसंबी नाम अत्थि पुरी ॥ पसरंत-परुप्पर-पणय-कलह-कोवेण अकय-जोगेण । मिहुणाण कुणइ पीडं चंदो च्चिय जत्थ रयणीसु॥ तत्थासि वीरसेणो नरेसरो नीइ-कंदली-कंदो। पणमिर-पत्थिव-मत्थय-कुसुमावलि-लीढ-पयवीढो ॥ तस्सासि माणणिज्जो जिणदत्तो नाम सावओ सेट्ठी। तस्स तणओ सुबंधू गहिय-कलो जुव्वणं पत्तो॥ रइ-सरिस-ख्व-रेहं सुनंद-वणियस्स वसुमई धूयं । गुरु-विहव-वित्थरेणं पिउणा परिणाविओ एसो॥ धयवड-चवलत्तणओ समत्त-भावाण भव-समुत्थाण । पंच-नमोकार-परो पंचत्तमुवागओ सेट्ठी ॥ जह वच्चा किरण-गणो अत्थमयंतेण सह दिणंदेण । तह अत्थमिओ अत्थो जणएण समं सुबंधुस्स ॥ धण-वजिओ सुबंधू बंधुयणस्स वि असम्मओ जाओ। सो चेव पिओ पायं जणस्स जं सेवए लच्छी ॥ अह अन्नया पयहो विउत्त-जण-मीण-हणण-केवघो। कय-तरुण-मण-प्पमओ महुसमओ मयण-दप्पमओ ॥
नच्चंत-रमणि-कंकण-कलाव
कल-सद्द-पबोहिय-कुसुम-चाव। . अच्छेरय-रंजिय-तरुण-सत्थ
सुर-घरिहिं हुंति रहजत्त जत्थ ॥ जहिं कुसुम-गंध-लद्वालि-जाल
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