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कुमारपालप्रति
संतराओ कत्तो वि आगओ इह पुरे नरो एक्को । सयल - कला-कुल- गेहं रूवेण विणिज्जियांगो ॥ सो महिलाइ नव-जीव्वणाए दट्ठूण मयण- विहुराए । नीओ स-हिं तंबोल- भोयणाईहिं गोरविओ ॥ ती सह विसय-सुहं सेवतो सो ठिओ कवि दियहे । अन्न- दिणे अन्नाए नारीए कहवि सो दिट्ठो ॥ तीए वि नियं गेहूं नीओ काऊण गरुय- सम्माणं । विसय-सुहं सेवंती तीइ धरिओ चिरं कालं ॥ तस्स कए अन्नोन्नं दुन्निवि नारीउ ताउ कलहंति । अह कहमवि पढमाए एसो निय-गेहमाणीओ ॥ तस्स निसाए सुत्तस्स मत्थयं छिंदिऊण पठ्ठवियं । गेहम्मि सवत्तीए पयंपिया सा पुणो एवं ॥
जइ तुह इमम्मि नेहो इमस्स ता मत्थएण सह कुणसु । जलण - पवेसमहं पुण एयकबंधेण सह काहं ॥ तो जलणम्मि पविट्ठाउ दोवि महिलाउ नेह गहिलाओ । अविमरिसिय- कारितं अकित्तिमं काम विहुराण ॥ तं असमंजसमायन्निऊण नागो भणेइ संविग्गो । इत्थीसु असंतोसो इमस्स जाओ मरण हेऊ ॥ तोऽहं संतोस कए गेहामि परिग्गहस्स परिमाणं । तं गेहइ सकलत्तो नागो गंतुं गुरु- समीवे ॥ तप्पभिइ होइ नागो आजम्मं एग-दार संतुट्ठो । नागसिरी उण मणसावि कुणइ पर- पुरिस - परिहारं ॥ जिण-भवण- पडिम- प्याउ कारवइ पुत्थए लिहावेइ । साहूण देइ दाणं सन्निज्झं कुणइ सड्डाणं ॥ एवं मुच्छा-रहिओ नागसिरीए पियाइ सह नागो । धम्मे धणं निजुंजइ खंडइ न परिग्गह- पमाणं ॥ अन्न- दिणे आगंतुं नागं वागरइ वाणिओ एको । तुह पिउ-दव्वं वेत्तुं पत्तो संतरम्मि अहं ॥ तत्थेव ठिओ कारण वसेण दव्वेण तेण तत्थ मए । दव्वं बहुयमुवज्जियमिहि पुण आगओ इत्थ ॥
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[ चतुर्थः
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