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३४६ कुमारपालप्रतिबोधे
[ चतुर्थः लच्छि । पच्छा पयासिओ लोए । निवेसिओ रज्जे । निग्गओ नयराओ सयं चेय जओ । अणुरत्त-पयइ-वरगं पालइ रजं हरिविकमो।।
अन्न-दिणे सिरिपुर-जयर-सामिणा चंडसेण-राएण । निय-दयं पट्टविउ भणिओ हरिविक्कमो एवं ॥ जो तुह पुव्व-नरिंदेहिं मज्झ दिन्नो निरंतरं दंडो । तं संपइ देसु तुमं पि अन्नहा होसु रणसज्जो ॥ जो पुव्व-पत्थिवेहि दिन्नो दंडो तमेव संभरसु । देमि न दंडमहं पुण वेत्तुं वंछामि तुह पासे ॥ इय हरिविकमराएण जंपिए नियपुरं गओ दूओ। गंतूण तेण कहियं पुव्वुत्तं चंडसेणस्स ॥ तं सोउं सो कुविओ चलिओ चउरंग-सेन्न-परियरिओ । तत्तो पत्तो हरिविक्कमो विनिय-देस-सिमंते ॥ दुण्हिवि दलाइं मिलियाई ताण जायं जएक-चित्ताणं । कुड्ड-वसागय-सुर-खयर-सिद्ध-रुद्धंबरं जुद्धं ॥ पहरण-संघ-समुच्छलंत-हुयवह-फुलिंग-छउमेण । खुर-रय-घणंधयारे रणम्मि रेहति खजोया॥ हरिविक्कम-सेन्नेणं जलहि-जलेणेव उच्छलंतेण । निव-चंडसेण-सेणा नइ व्व पच्छामुही विहिया ॥ तो चंडसेण-निवई कुविओ उद्वेइ पबल-बल-कलिओ। हरिविक्कम-सेनं मंदरो व्व जलहिं विलोडेइ ॥ थक्को एक्को हरिणो हरि व्व हरिविक्कमो पुरो तस्स । रवि-मंडलं व दित्तं सिरम्मि चूडामणिं काउं॥ चूडामणि-माहप्पेण चंडसेणस्स आगया मुच्छा। पडियाइं पहरणाई हत्थेहिंतो ससिन्नस्स ॥ हरिविक्कम-सुहडेहि गहिओ पुंजीकयाई ताई पुरो । तत्तो चूडारयणं लिराउ ओसारियं रन्ना ॥ सत्थी हूओ दद्दूण चंडसेणो ससिन्नमप्पाणं । पहरण-रहियं हय-विकमं च चिंतइ विसन्न-मणो ॥ एस हरिविक्कम-निवो अणन्न-सामन्न-पुन्न-पब्भारो । देवय-कय-सन्निज्यो मणुस्समेत्तं न होइ फुडं ॥
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