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अस्तेयत्रते दत्त-संखायण कथा |
अह तस्स विट्ठाई जलहि-निहित्ताइं जाणवत्ताई । थल-पह-पट्टवियं तक्करेहिं हरियं सयल - भंडं ॥ निहाणाई याइं विहलत्तणं करिसणाई | कण- कप्पड - प्पमुहाई दड्ढाई अग्गिणा गेहे ॥ कय- विक्कए छेओ होइ न लब्भइ कलंतर-निउत्तं । न कुणंति य सम्माणं परियण-बंधुयण - नायरया ॥ जओ
प्रस्ताव: ]
रिद्धि विहूणह माणुसह न कुणइ कुवि सम्माणु । सउणिहि मुच्चइ फलरहिउ तरुवरु इत्थु पमाणु ॥ लच्छीइ विलसियं तं दहुं सुविनिंदियाल - सारिच्छं । विम्हय-विसाय - विवसो आढत्तो चिंतिउं दत्तो ॥ खणमेत्त-दि-नट्ठा हा ! लच्छी जेण तेण तक्केमि । तडिलय-तरंग - सुरधणु दव्वेण कया इमा विहिणा ॥ जइवि हु सूरु सुरु विअक्खणु
तहवि न सेवइ लच्छि पइक्खणु । पुरिस - गुणागुण- मुणण- परम्मुह महिलह बुद्धि पर्यंपहिं जं बुह ॥
संति पि सिरिं मोत्तॄण उत्तमा संजमं पवज्जंति । अहमा दूर-गयं पि हु तं पत्थंता किलिस्संति || तो मज्झ इमीए अलं ति चिंतिउं निग्गओ निय-गिहाओ । दत्तो परिब्भमतो भरुअच्छे पट्टणं पत्तो ॥ निव्वाण- मग्ग- साहण- कयायरो पाव-कायरो दिट्ठो । गुण-रण- सायरो तेण तत्थ धम्मायरो सूरी ॥ तं दहूण मुणिदं चंदं जलहि व्व सो समुल्लसिओ । नमिऊण रिद्धि-भेए पुच्छर, अह कहइ आयरिओ ॥ धम्मड्डी भोगिड्डी पाविड्डी इह तिहा भवे रिद्धी । सा भन्नइ धम्मिड्डी जा दिजइ धम्म- कज्जेसु ॥ सा भोगिड्डी गिज्जइ सरीर भोगम्मि जीए उवओगो । जा दाण- भोग-रहिया सा पाविड्डी अणत्थ-फला ॥
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