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प्रस्तावः ।
अस्तेयव्रते दत्त-संखायण-कथा । संखायणो पयट्टो अन्न-दिणे नियय-देसमागंतुं । दत्तो उण अकयत्थो त्ति ठाउमहिलसइ तत्थेव ॥ साहारणाइँ दुण्हवि इमाइँ रयणाइँ अम्ह इय भणिउं । संखायणेण दत्तो वि अप्पणा सह समाणीओ॥ सत्थेण सहागच्छंति दोवि ते रयण-संबलत्थइयं । मग्गे वहंति कमसो जा पत्ता निय-पुरासन्नं ॥ ता तत्थ भिल्ल-धाडी पडिया दत्तेण निय-करत्थाई । खित्ताइँ अणुवलक्खं रयणाई रुक्ख-गहणम्मि ॥ अह ताडिऊण दत्तं तस्स सयासाउ संबलत्थइया । भिल्लेहिं जम-भडेहिं व गहिया संखायण-समक्खं ॥ नीया पल्लिं भिल्लेहिं कइवि दियहाई तत्थ धरिण । मुक्का अनन्न-दिसाहि दोवि पत्ता पइट्ठाणं ॥ जइ कहवि रयण-लाभो न होइ ता होहमलियवाइ त्ति । संखायणस्स कहिओ दत्तेण न रयण-वुत्तंतो॥ अन्न-दिणे तत्थ गओ दत्तो पत्ताई तेण रयणाई। न समप्पियाई संखायणस्स एसो परोक्खो त्ति ॥ अह कित्तियम्मि काले गयम्मि पियरो इमाण काल-गया। जाया पमाण-भूया एए च्चिय दोवि सव्वत्थ ॥ संखायणो धणड्डो देव्व-वसेणं न तारिसो दत्तो। सो चिंतह रयण-कए खिजइ संखायणो न इमो॥ कुणइ परलोग-किरियाओ एस तत्तो अहं पि एयाओ। एयं चिय उद्दिसिउं करेमि एएहिं रयणेहिं ॥ एवं कए न होही मित्त-दोहो वि तो कुणइ दत्तो। परलोग-किच्चमत्थि य सेनेहो धम्म-बुद्धी य॥ एवं नियाज्यं पालिऊण आउ-क्खये मया दोवि । जत्थुप्पन्ना तं वागरेमि नर-नाह ! निमुणेसु ॥ चिट्ठति दुन्नि नयरीओ उत्तरा दाहिणा य महुराओ । महुराउ सुयण-वाणीउ जत्थ दक्ख व्व विलसंति ॥ पत्त-घण-च्छायाओ भमरहियाओ लसंत-सुमणाओ। जत्थ वणेसु लयाओ भवणेसु वसंति विलयाओ॥
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