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कुमारपालप्रतिबोधे
जलनिहि भु-रयणु व दुलह बोहि, इय मुणिवि पमत्तु म जीव होहि ॥ धम्मो त्ति कहंति जि पावु पाव, ते कुगुरु मुणसु निद्दय-सहाव । पपुन्निहि दुल्लहु सुगुरु-पत्तु तं वज्जसु मा तुहु विसय-सत्तु ॥ इय बारह भावण सुणि विराउ, मणमज्झ वियंभिय भव-विराउ । रज्जु वि कुतु चिंतइ इमाउ, परिहरिवि कुगइ - कारणु माउ ॥ इय सोमप्पह-कहिए कुमार निव- हेमचंद - पडिबडे । जिणधम्म- प्पडिबोहे पत्थावो वण्णिओ तहओ ||
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इत्याचार्यश्री सोमप्रभविरचिते कुमारपालप्रतिबोधे तृतीयः प्रस्तावः ॥
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