________________
कुमारपालप्रतिबोधे
[तृतीयः गोसे नरिंद-सहिया देवी गंतूण पुच्छए साहुं। चरियं दुण्हवि तुम्हं किमिंद्यालं व चोज-करं ॥ देवेण विसय-सेवा मह पञ्चक्खं कया वि अवलत्ता । सा मन्निया नईइ पि अकय त्ति तओ पहो दिन्नो ॥ घय-सालि-दालि-मोयग-मंडग-पमुहं मए सहत्थेण । जं दिन्नं तुह अन्नं तए किमन्नस्स तं दिन्नं ॥ भयवं ! इत्तियकालं देहं निव्वहह कह विणाहारं । ता खलु कयं पि भोयणमवलवसि तुमं पि साहसिओ ॥ एसा नई वि कत्तो सरिसी दुण्डंपि तुम्ह संघडिया। जा बहु मन्नइ वत्थु तुब्भेहिं कयं पि अकयं ति॥ भणइ मुणि-विजयवम्मो इममत्थं सुणसु तुज जइ कुहूं। मह वय-गहणाउ चिय इय चिंतंतो ठिओ राया ॥ को सो हवेज दियहो जंमि अहं सव्व-संग-परिहारं । काउं पडिवजिस्सं गुरु-पय-मूलम्मि पव्वजं ॥ कइया दुवालसंगं गिहिस्समहं गुरूण वयणाओ। कमलाओ महुरं भहुयरो व्व मयरंद-संदोहं ॥ दुव्वयणाई सहंतो घरे घरे फुरिय-असम-पसम-रसो । भिक्खागओ सहिस्सं बावीस-परीसहे कइया । बाहु व्व कया काहं उवग्गहं भत्त-पाण-दाणेण । साहूण कया वीसामणं च काहं सुबाहु व्व। सम-सुह-दुक्खो सम-कणय-पत्थरो सम-सपक्ख-पडिवक्खो। सम-तरुणि-तणुक्केरो सम-मोक्ख-भवो कया होहं॥ इय वेरग्ग-पहाणो एसो राया परोवरोहेण । विसएसु पयहो वि हु अपयट्टो चेव दट्ठव्वो॥ वेयण-वेयावच्चे इरियहाए य संजमहाए । तह पाणवत्तियाए छठें पुण धम्म-चिंताए ॥ एएहिं कारणेहिं उग्गम-उप्पायणेसणा-सुद्धं । भत्तं भुंजतो विलु मुणी अकय-भोयणो भणिओ॥ इय सोउं पडिवजइ तह त्ति सव्वं जयावली देवी। जिण-पूयण-मुणि-वंदण-दाण-परा गमइ दियहाई॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org