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प्रस्तावः।
भावनायां जयवर्म-विजयवर्म-कथा । मं कुटणि व्व भुयगं तुमं पयारेसि अलिय-वयणेहिं । दिव्व-सरूवं तु नई पयारिउ कस्स सामत्थं ॥ रन्ना भणियं तुह देवि ! किं वियारेण कुणसु मह वयणं । देवी भणइ सकोवं व देव ! किमहं गहग्गहिया ॥ विसय-सुहसेवणे जा सयावि तुह सक्खिणी अहं नाह!। तह जीए अंगेसुं एयं चित्तं समत्तं पि॥ साहं सच-पियाए नईइ पुरओ असच्चमाएसं । तुह वयणेण भणंती होहामि न कस्स हसणिज्जा ॥ ता वेत्तूण भुयाए भणिया देवी निवेण सप्पणयं । मह वयणमिक-वारं करेसु भणिएण किं बहुणा ॥ चित्ते असदहंती वि तं गिरं नरविमाणमारूढा । रन्नो उवरोहेणं नई-समीवं गया देवी॥ दोसु वि तडेसु लग्गं पास-ट्टिय-रुक्ख-उक्खणण-दक्खं । अभंलिह-लहरि-भरं दद्दूण नई भणह देवी॥ जह मह देवर-दिक्खा-गहणाउ पभिइ भत्तुणा मज्झ । न कओ विसय-पसंगो ता भयवइ ! देहि मे मग्गं ॥ तो देह नई विवरं वच्चइ देवी सविम्हया तेण । तं वंदिउँ मुणिंदं जा आगच्छइ नई ताव ॥ मिलियं नई तह चिय दटुं मुणिणो पुणो गया पासं । नइ-उत्तरण-निमित्तं कहेइ निव-वयण-वुत्तंतं ॥ तीए पडिबोह-गुणं विचिंतिउं अणुचियं पि सा भणिया। देवि ! पुणो वच तुमं भणसु नई एरिसं वयेणं ॥ मह देवरेण भयवइ ! वय-गहणाणंतरं जइ न भुत्तं । ता विरम देहि मग्गं अह भुत्तं मा तओ दिजा ॥ ता देवी आगंतुं वागरइ नई पडुच्च मुणि-वयणं दिन्ने नईइ मग्गे स-विम्हया सा गया गेहं ॥ कय-भोयणा निवइणो देवी कहिऊण सव्व-वुत्तंतं । . भणइ पहु ! तुम्ह दुण्हवि किमेयमचन्भुयं चरियं ॥ राया भणइ करिस्सइ भयवं चिय सव्व-संसयोच्छेयं । अच्छरिय-भरिय-हियया कहं पि रयणिं गमइ देवी ॥
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