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कुमारपाल प्रतिबोधे
जं
पुण
मरुदेवीए अकय वयाए वि भावणा जाया । तं नृणं उयाच्चकेण जागरण-तुलं ति ॥ मंती पभणइ - भयवं ! कह टउयाटच्चकेण जागरणं ? | सूरी जंप - पयडं जयम्मि अक्खाणयं एयं ॥ अस्थि महावडगामे वसंतपालो त्ति ठक्कुरो तत्थ ।
ओ गाम-तलारो तं गामं रक्खए निचं ॥ गामाहिवरस अच्चंत वल्लहो अस्थि कुक्कुडो एक्को । जस्स सिहा सोहइ पउमराय घडिय व्व आरत्ता ॥ नज्जइ जस्स पिसंगं चंचु-पुढं जच्च-कंचणमयं व । रेहइ घुसिण-विलित्तं व पिंजरं जस्स चलण- जुयं ॥ छज्जंति जस्स पिच्छा चित्ताभा विविह रयण - रइय व्व । तं पिच्छंतो चि गाम-ठक्कुरो निव्वुई लहइ ॥ ठक्कुर - हासने गिम्मि चंडा तहिं वसह महिला | अह तीए कुक्कुड-मंस-भक्खणे दोहलो जाओ ॥ अन्नो य कुक्कुडो तत्थ नत्थि तत्तो कहिं पि संगहिउं । सो चेव बडो विणासिउं भक्खिओ तीए ॥ तं कुक्कुडं अद्धुं वसंतपालो अनित्र्युओ जाओ । उयं तलारमाणवइ तंबचूडस्स सुद्धि-कए ॥ कत्तो वि तप्पत्ति अलहंतो सो वि भणइ फुडमेयं । कुक्कुड- पउत्ति कहगस्स देमि दोणार-वीसं ति ॥ तं सोउं धण-लुद्धा चंडाइ सयज्झिया कह वि मुणिउं । चवला नाम तलारस्स अग्गओ अक्खए एवं ॥ चंडाइ भक्खिओ कुक्कुडो त्ति को पच्चओ त्ति सो भणइ । चवला जंपर चंडा- मुहेण एवं कहावेमि ॥ तो डल्लाए ठइउं ठविओ चवलाइ निय-गिहे टउओ । सहि-कय- कवड - सिणेहाइ सहिउं पुच्छिया चंडा ॥ सहि ! कुक्कुड वृत्तंतं मह कह मूलाउ सा वि तं कहइ । जा कुक्कुडो मए भक्खिओ त्ति एत्यंतरे चवला ॥ हृत्थ-ट्ठिय-लट्ठीए डल्लाए उवरि टच्चकं देइ | उयं जाणावेउं तो चंडा चिंतए एवं ॥
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