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प्रस्तावः ]
भावनायामिलापुत्र- कथा |
अकुलुग्गयाद किमिमीह पत्थिवो एस अणुरन्तो ॥ अहवा किमणेण अहं पि एरिसो चेव जेण वहामि । दूरे नियइ जलतं ता लोओ न उण पाय-तले ॥ धिद्धी ! मह जम्ममिणं जेण न लज्जा कया गुरु-जणस्स । जणणि-जणयाण दुक्खं मणं पि न निरूवियं जेण ॥ परिभावियं न चित्ते लोए लहुयत्तमत्तणो जेण । जेणोभय- लोय-भयं न थेवमेत्तं पि संभरियं ॥ उमग्ग - विलग्गेणं मत्तगएण व मिंठ रहिएण । पर- पुट्ठे-वालएण व पर- घर - संचरण - सीलेण ॥ भक्खाभक्ख-विभागं अपेक्खमाणेण हुयवहेणेव । गिरि - नइ - पय-पूरेण व नीयं चिअ वच्चमाणेण ॥ विस रुक्खेण व नीसेस-लोय - उब्वेय-करण- दक्खेण । सयल - जण-गरहणिज्जं लंखय कुलमणुसरंतेण ॥ अहह ! मए मूढेणं कओ कलंको कुलम्मि ससिविमले । सयणाणं वयण सरोरुहेसु मसि कुच्चओ दिन्नो || उडूलियं समग्गं तइलोक्कं अयस-पंसु-पसरेण । अप्पा अणप्प - दुग्गइ - दुक्खाणं भायणं विहिओ ॥ हा ! रूवमेत्त - दंसण-लोल-सहावत्तणेण सलह समे । पाविट्ठि - दिट्ठि-रंडे पंच इमे मंडया तुज्झ ॥ इय वेरग्ग-गएणं अणेण कस्सवि गिहम्मि धणवइणो । पंच-समिया ति-गुत्ता दृढ व्वया साहुणो दिट्ठा ॥ निय - रूव - विजिय-तियसंगणाउ तरुणीओ धणवइ-बहूओ । भत्तीइ भत्त-पाणं तेसिं दितीओ दिट्ठाओ ॥
ते दहुं सो चिंतह इमे कयत्था सुलद्ध - जम्माणो । जे एरिसे पि धीरा न दिति दिट्ठि जुवइ-वग्गे ॥ अहह ! अहं पुण पावो अणज-चरिओ विवेय-परिहरिओ । जो अकुलीण- जत्थे अणत्थमेवं अणुहवामि ॥ इय चिंतंतस्स इमस्स मोहणिज्जं गयं खओवसमं । उल्लसिओ सुह-भावो फुरिओ चारित-परिणामो ॥ चित्तेण चत्त-संगो मुक्क-ममत्तो सरीरमेत्ते वि ।
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