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कुमारपालप्रतिबोधे
सामि तिपयाहिणिउं केवलि - परिसाए पत्थिया एए । एह नर्मसह सामि ति भणइ तो गोयमो भयवं ॥ मा कुरु केवल- आसायणं ति वागरइ गोयमं सामी । मिच्छादुक्कड - पुवं ते खामइ गोयमो नमिउं ॥ चिंतेइ गोयमो पुण वि गरुय कम्मो किमेत्थ जम्मेऽहं । सिज्झिस्सामि न वा किं एए पुण दिक्खिया वि मए ॥ पत्ता केवल नाणं अहो महंतो इमाण पुन्न- भरो । एवं चिंतावन्नं पयंपए गोयमं सामी ||
सचं सुराण वयणं जिणाण वा किं ति गोयमो भणइ । नाह ! जिणाणं सामी जंपइ ता मा कुणसु अधिरं ॥ तण-वंस-चम्म-उन्ना कह तुल्ला हुंति जेण इह नेहो । चिर- संसग्गा तुह मइ उन्ना कड-संनिहो नेहो ॥ सो दढयरो जया तुज्झ तुट्टिही केवलं तया होही । ता तुममहं च गोयम ! अंते तुल्ला भविस्सामो ॥
इति भावनायां शाल- महाशाल-कथा ।
पुव्व-कय-कम्म वसओ नीय-जणोचिय- पहे पयट्टो वि । सुह- भावणाई पत्तो केवल - नाणं इलापुतो ॥ तं जहा
इत्थेव भरहवासे विसिह-सर- वावि- कूव-कय-सोहं । धण-धन्न-समिद्ध-जणं अस्थि इलावणं नयरं ॥ पुरिसा परत्थ-लुद्धा सरोय- नयणाउ जत्थ इत्थीओ । भवणाई भोगि - रुडाई तत्थ किं वण्णिमो अन्नं ॥ तत्थ निवो जियसत्तू कराल - करवाल राहुणा जस्स । निपि सूर - रायाण कवलणं कीरए चोजं ॥ तस्सासि माणणिजो वेसमण - सरिच्छ-रिद्धि-वित्थारो । इन्भो नाम गुण-निही समग्ग-वणिवग्ग-अवयंसो ॥ निरुवम- रुवाइ - गुणोह - धारिणी धारिणी पिया तस्स । तेसिं निरवच्चतं करवत्तं पिव दलइ हिययं ॥
जओ
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संसार - निंब-तरुणी कडुयं कुसुमं व विसय-सुक्खं पि ।
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[ तृतीयः
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