________________
२९६
कुमारपालप्रतिबोघे
राया वि पहाण-जुओ आगंतुं नमइ तं झत्ति ॥ रुक्खे विओवगरणो एगागी हरिय-काय लुढियंगो । वय - निव्विन्नो मन्ने इमो त्ति मुणिउं भणइ राया ॥ भो ! भो ! सुमरह तुब्भे जं वारं तस्स मज्झ तंमि दिने । रहस- वसेण पवन्ना बालेण अणेण पवज्जा ॥ तत्तो राया दाऊण कंडरीयस्स राय - चिंधाई । मुणि-लिंगाणिय-गहिरं नीहरइ सयं गहिय- दिक्खो ॥ अह वय-भट्ठो रंको व्व किस-तणू एस भोयणत्यो त्ति । गरहिज्जतो लोएहिं कंडरीओ कुणइ कोवं ॥ भुंजामि ताव पढमं पच्छा एयाण निग्गहं काहं । इय चिंततो चित्तम्मि कंडरीओ गओ गेहं ॥ उत्तम मज्झिम- अहमो ति-विहो लदो चिराउ आहारो । भुत्तो तव तिव्वछुण कंडरीएण आकंठं ॥
तस्स बहु-भोयणाओ य भोग-जागरणओ य रयणीए । जाया विसुइया वेणा य महई समुपपन्ना ॥ भत्थि व्व अनिल-पुन्ना वियसियमुयरं निरुंभिओ पवणो । तस्मुल्लसिया तहा सव्वंगं पसरिओ दाहो | भट्ट - पन्नो पावो एसो त्ति विभाविडं निओगीहिं । सो अकय-चिकिच्छो किच्छमुवगओ चिंतए एवं ॥ जह कहवि इमं रयणि अइक्कमिस्सामि तो पभायम्मि । निहणिस्सं स कुटुंबे सव्वे वि निओगिणो एए ॥ एवं रुद्द ज्झाणेण कहलेसा - समन्निओ मरिडं । सत्तम - पुढवीए इमो उप्पन्नो अप्पट्ठाणे ॥ अह पुंडरीय - साहू अहो सुद्धं चिराउ मुणि धम्मं । काहामि गुरु- समक्खं ति चिंतिउं चलइ गुरुपासे ॥ सो वेला - लंघिय - सीय- -रुक्ख-भोयण - किलामिओ मग्गे । कोमल-कम-तल - नीहरिय- रुहिर - संसित्त-महिवट्टो | गामे उवस्सयं मग्गिऊण तण-सत्थरम्मि उवविट्ठो । गुरु-पासे गिहिस्सं कइया दिक्खं ति चिंतेइ || गरहिय-निय दुच्चरिओ पइसमय समुल्लसंत-सुह-झाणो । पीगोवि विवन्नो सो सवट्ठे सुरो जाओ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
[ तृतीयः
www.jainelibrary.org