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कुमारपालप्रतिबोधे
[तृतीयः
छट्ट-तव-पारणे रइय-सुक्क-कंदाइ-भोयणो दुइओ। दुइयाइ मे हलाए चडिओ पंच-सय परिवारो॥ निचं कयट्टमो विहिय-सुक्क-सेवाल-पारणो तइओ। पंच-सय-तवस्सि-जुओ आरूढो मेहलं तइयं ॥ ते उर्दू आरुहिडं अखमा चिटुंति उम्मुहा जाव । पेच्छंति कणय-चन्नं थूल-तणुं गोमयं ताव ॥ जंपति ते परप्परमम्हे अट्ठावए तव-किसा वि । आरुहिउँ न तरामो कहमारुहिही इमो थूलो ? ॥ इय जंपतेसु इमेसु गोयमो तं गिरिंदमारूढो । तियसो व्व सो खणेणं नयणाण अगोयरं पत्तो ॥ एयस्स अहो ! सत्ती महारसिणो ता नियत्तमाणस्स । सीसा अम्हे होमि त्ति निच्छओ तावसेहिं कओ ॥ तो गोयमो मणोहर-मणि-कणय-मयं जिणालयं पत्तो। अट्टावय गिरि-रायस्स मउड-सोहं जमुव्वहइ ॥ भरहेसर-कारविया चउवीस-जिणाण तत्थ पडिमाओ। अप्पडिमाओ वन-प्पमाण-जुत्ताउ सो नमइ ॥ निग्गंतुं जिण-गेहाओ इंदभूई असोग-रुक्ख-तले । उवविट्ठो तियसाणं जिण-पन्नत्तं कहइ धम्मं ॥ पत्थावे भणइ इमं तव-वसओ अहि-चम्म-सेसंगे। किडि-कडिय-संधिणो जंपिउं पि अखमा मुणी हुंति ॥ तो चिंतइ वेसमणो थूलत्तं गोयमस्स पेक्खंतो। किं भयवं साहु-गुणे अप्प-विसंवाइणो कहइ ॥ मणपज्जवेण भयवं तब्भावं जाणिऊण वजरइ ।
परमत्थओ पमाणं झाणं न किसत्तणं तणुणो ॥ तहा हिजंबुद्दीवम्मि महाविदेह-ठिय-पुक्खलावई-विजए। अस्थि मही-महिला-पुंडयं व पुंडरिगिणी नयरी ॥ वेरि-करि-पुंडरीओ ससि-पंडुर-पुंडरीय-रुद्धदिसो। सिरि-केलि-पुंडरीयं तत्थ निवो पुंडरीओ त्ति ॥ तस्स भुय-दंड-कुंडलिय-चंड-कोयंड-कंड-तुंडेहिं ।
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