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कुमारपालप्रतिबोधे
[ तृतीयः
इय जंपंती अक्का हक्कारावइ दिवाकित्तिं ॥ तस्स अणिच्छंतस्स वि तह कम्म कारवेइ सा पहवि । अवणीय-बक्कलं तं परिहाविय-वत्थ-आभरणं ॥ परिणावइ निय-धूयं रूवेण सुरंगणं व पच्चक्खं । गायंतीओ वहू-घरमसेस-वेसाओ चिट्ठति ॥ मुणि-वेसा वेसाओ जाओ गयाओ कुमारमाणेउं । ताओ कहंति रन्नो एवं उवलोभिओ कुमरो ॥ आगमणे संकेयं कारविओ किं तु ताय-दसणओ। अम्हे नहाओ तओ न सकिओ सहिउं कुमरो॥ अम्हे गवेसमाणी अडविं चिय उवगओ न पिउ-पासं। तं सोऊण विसन्नो पसन्नचंदो भणइ एवं ॥ अहह अजुत्तं जं सो पत्तो पासं न मज्झ पिउणो । मीणो व्व जलाओ सो जणयाओ विजोजिओ मरिही ॥ इय दुक्खेण नरिंदो सयणिज-गओ रई अपावंतो। तीए गणियाइ गिहे मुरय-रवं निसुणिउं भणइ ॥ मइ दुक्खिए वि सुहिओ को एसो जस्स मंदिरे एवं । सुव्वइ मुरय-रवो तं परंपराए सुणइ गणिया ॥ सा आगंतुं विन्नवइ नरवई देव ! मह पुरा कहियं । नेमित्तिएण जो तुह एइ गिहं तावसो तरुणो॥ तस्स तुमं निय-धूयं दिजसु तस्स पभावओ होही। सा सुख-भागिणी अज मज्झ सो आगओ गेहं ॥ परिणाविओ य धूयं महूसवो तेण वइ गिहे मे । देवो दुक्खी न मए मुणिओ ता खमसु मह दोसं ॥ तो रन्ना पट्टविया पुव्व-नरा तदुवलक्षण-निमित्तं । गंतुमुवलक्खिउं तं आगंतुं विन्नवंति निवं ॥ परितुट्ठमणो राया वहू-समेयं करेणु-खंध-गयं । वकल-चीरिं आणेइ निय-गेहं गरुय-रिडीए॥ परिणीय-राय-कन्नो सो कुमरो मुणिय-सयल-ववहारो। संपन्न-वंछियत्थो तियसो व्व सुहं गमइ कालं ॥ जणओ वि वणे कुमरं अपेच्छमाणो दढं कुणइ सोयं । निव-पट्टविया पुरिसा कहंति से कुमर-वुत्तंतं ॥
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