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२८३
प्रस्तावः ]
लब्धिप्रकटने विष्णुकुमार-कथा । किं वयण-वित्थरेणं न देमि वसिउं पुरे तुम्ह ॥ जंपइ पुणो वि विण्हू वसंतु मुणिणो वर्णमि पुर-बाहिं । कुविओ नमुई साहइ न सहेऽहं तुम्ह गंधं पि ॥ मज्झे वा बाहिं वा पुरस्स संवास-पत्थणाइ अलं । ता मेल्लह मह नयरं निहणिस्सं अन्नहा तुम्भे ॥ तं सोउं विण्ड मुणी पजलिओ पावओ व्व घय-सित्तो। तह वि नमुइं पयंपइ पय-त्तयं देहि मह वसि ॥ नमुई जंपइ दिन्नं पय-त्तयं तो इमाउ जइ बाहिं । ठाहिसि तओ हणिस्सं एवं होउ त्ति भणइ मुणी ॥ अह वडिउं पयहो किरीट-कुंडल-धरो कुसुम-माली। धणु-वज-किवाण-करो भयंकरो तियणस्सावि ॥ विकिरंतो गह-चक्र चक्कर-नियरं व निय-करग्गेहिं । कंपावंतो पयदद्दरेण पत्तं व महिवीढं ॥ उच्छालंतो जलनिहि-सलिलं चिर-भुत्तमुदवाऊ व्व । वेल व्व नइ-पवाहे पडिलोम-पहे वहावंतो॥ पाडतो खयर-गणं तणं व फारेण फुक्क-पवणेण । वढेतो सो जाओ मेरु-समो कय विविह-रूवो॥ दाउं सिरंमि पायं धरिणीए पाडिओ इमो नमुई। चिट्ठइ चलणे ठविउं पुव्वावर-जलहि-मज्झमि ॥ तं ति-जय-क्खोभ-करं दट्टण सुरंगणाउ सकेण । पट्टवियाओ गायंति महुरमरहंत-भणियत्थं ॥ कोवो जलणो व्व वणं दहइ तवं पन्नगो व्व कुणइ भयं । जीयं पक्खिवइ भवे रत्ने दस्सिक्ख-तुरओ व्व ॥ इय कोवोवसम-कए तह किंन्नर-खयर-पमुह-महिलाओ। गायंति सवण-मूले मुणिस्स पुरओ य नञ्चति ॥ पउमो वि आगओ निय-पमाय-सचिवावराह-भीय-मणो। नमिऊण चलण-लग्गो खमावए विण्हु-मुणि-नाहं ॥ भयवं ! न मए मुणिया कीरंती दुट्ठ-मंतिणा इमिणा । आसायणा मुणीणं कहिया य न मज्झ केणावि ॥ तह वि इमो मह दोसो जं नमुई मज्झ संतिओ भिच्चो । छिप्पंति भिच-दोसेण सामिणो नीइ-वयणमिणं ॥
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