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२७८
[ तृतीयः
कुमारपालप्रतिबोधे एगेण इंदिएणं सेसिंदिय-अत्थ-दसणं जत्थ । संभिन्न-सोय-लडी मुणिणो सा होइ तव-वसओ ॥ जंघाचारण-लद्धीइ एक-फालाइ जाइ सो रुयगं । इक्काए नंदीसरमेइ सठाणे तु बीयाए ॥ एकाए फालाए मेरु-सिरं जाइ सो तओ चलिओ। एक्काए नंदणवाणे बीयाए एइ सठाणं ॥ सो विजालद्धि-जुओ इक्काए माणुसुत्तरं जाइ । बीयाए फालाए वच्चइ नंदीसरं दीवं ॥ तत्तो नियत्तमाणो इक्काए चेव एइ सहाणं । उद्रं तु दोहि फालाहि जाइ इकाइ पुण एइ ॥ सो आसीविस-इड्डीइ निग्गहाणुग्गह-क्खमा होइ । लडीओ अप्प-कजे तहा वि न पउंजए समणो ॥ तव-पभवाओ लडीओ संघ-कजे पउंजमाणो वि। विण्हुकुमारो व्व मुणी मणं पि लिप्पइ न पावेण ॥ तं जहा
अत्थित्थ भरह-खेत्ते वित्थिन्नं हथिणारं नयरं । जत्थ निवसंति निच्चं तुरय व्व सुहेसिणो लोया । इक्खागु-कुल-सरोवर-पउमं पउमुत्तरो निवो तत्थ । सोहग्ग-हत्थि-साला जाला नामेण से देवी॥ सीह-सुविणेण लद्धो विण्हुकुमारो त्ति से सुओ एक्को। चउदस-सुविण-पिसुणिओ वीओ पुत्तो महापउमो ॥ ते जुव्वणमारूढा अह सजिगीसो त्ति जाणिउं ठविओ। पउमुत्तरेण रन्ना जुवराय-पए महापउमो॥ पत्तो उजेणीए सिरिधम्मो नाम पत्थिवो अत्थि । तस्स नमुइ त्ति मंती कुसत्थ-भाविय-मइ-प्पसरो ॥ अह मुणिसुव्वय-सीसो संपत्तो तत्व सुव्वयायरिओ। तन्नमणत्थं रन्ना बच्चंतो पुर-जणो दिद्यो॥ कत्थ गुरु-वित्थरेणं वच्चइ एसो त्ति पुच्छिओ नमुई । सो कहइ के वि समणा उज्जाणे आगया अज ॥ ते नमिउं जाइ जणो अहं पि जामि त्ति जंपियं रन्ना। भणियममच्चेण तुमं जइ धम्मं देव ! सोउमणो ॥
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