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प्रस्ताव: ]
शीले ताराकथानकम् ।
इय चितिउं नरिंदो जंपइ भो ! किं अजुत्तमिह मित्त ! | मित्ताण नेह - जुत्ताण संगमो किं न अविरुको ॥ तत्थेव निसं गमिउं चंदो गोसे गओ नियय-गेहूं | निसि वृत्तंतं ताराइ अग्गओ कहइ सा भइ ॥ एवं कओ विलक्खो कयाइ कुप्पिज पत्थिवा नाह ! | तत्तो सिंहल - दीवे जामो तुह मामग-समीवे ॥ तो जलहि- लंघण-मणो चंदो मयणस्स सत्थवाहस्स । पवहण मारूढो संखचूड - ताराहिं परियरिओ ॥ मयणस्स मण समुद्दो तारा-मुह-चंद - दंसण-वसेण । संजाओ उज्जंभिय-अणप्प- कुवियप्प-कल्लोलो ॥ तं मुणिउं दुन्नि वि ओसहीहि काऊण रूव- परिवत्तं । चिट्ठति जाव रयणीइ ताव पुरिसोत्ति सो तारं ॥ जलहिंमि खिवि इत्थि त्ति चंदमालिंगिउँ महइ मयणो । चंदो पडइ नर - रूवमह विलक्खी हवइ मरणो ॥ कत्तो अ-कज्ज-कारीण होइ कुसलं ति पयरणत्थं व । फुइ झति पवहणं महिला-हियगत्थ- गुज्झ व ॥ सामिम्मि विवन्ने सेवय व्व फुट्टम्मि पवहणे लोया । पडिया समुह - वसणे सव्वे वि दिसो दिसं पत्ता ॥ तारा समुह-पडिया निम्मल सील-प्पभाव - तुहाए । कीए वि देवयाए अकिलेसेण वि तडं नीया ॥ तीरे परिभमंती भिल्लेणिक्केण पात्रिया तारा । नेऊण नियय-पट्टि समप्पिया पल्लि - नाहस्स || पल्लिवई भोगत्थं तं अब्भत्थइ न मन्नए तारा । सेविस्सामि हट्ठेण वि इमं ति सो मंतिउं सुत्तो ॥ सुविणे भणिओ कुल देवयाइ एयं महा-सई मूढ ! | मा खलियारेसु तुमं तुमए एयं पि किं न सुयं ॥ सीहह केसर सहहि उरू सरणागओ सुहडस्स । मणि मत्थइ आसीविसह किं धिप्पइ अमुयस्स ॥ तो उवसंत-मणो सो निय-पुरिसे भणइ विक्किणह एवं । मंगल - उरम्मि नेउं तं वेत्तुं ते वि जंति पुरे ॥
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