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कुमारपालप्रतिबोधे
[तृतीयः
तत्थ सुमह त्ति सेट्ठी तारं दहण विक्किणिजतं । देइ दयाए ददं नराण जं मग्गियं तेसिं ॥ वेत्तुं तारं निय-मंदिरंमि नेऊण जंपए भई । निय-घरणि सुपणु ! तए एसा पुत्ति व्व दवा ॥ पुत्ति त्ति भण: सेट्ठी मुहेण मन्ने इमीइ रूवेण । चित्ते पुण अरिखत्तो काही परिणिं इमं धुत्तो। इय चिंतंती भदा बाढमवन्नाइ पेच्छए तारं । पइ-पुत्त-संगमासा-कयग्गहा सहइ सव्वं पि ॥ अन्न-दिणे सलिलत्थं गया इमा पेच्छिउं परिभमंतं । मग्गंमि संखचूडं पमोय-भर-परवसा जाया ॥ पुन्नेहिं पुत्तय ! तुमं चिराउ दिट्टो मए जियंतीए । इय जंपंती तारा तम्मइ परिरंभिउं पुत्तं ॥ भणिया सुएण माए मा मं छिवसु त्ति जेण दिव्व-वसा । फुट्टे पोयंमि अहं फलग-विलग्गो तडं पत्तो ॥ गहिओ नरेण केण वि इह नयरे आणिऊण विकिणिओ। चंडाल-घरे सोई धणसेहि-धणाई चारेमि॥ कहिउं निय-वुनतं सा भणइ सुयं मिलिज मह निच्चं । अह तत्थ अत्थि पत्थिव-सिरोमणी मणिरहो नाम ॥ केणावि तस्स कहियं इह एक्का सुमइ-सेट्ठिणो भवणे । कय-भुवणच्छेरा अच्छर व्व अच्छइ कुरंगच्छी ॥ मलिणंगी वि कुवत्था वि उव्वहइ इमा अउव-लावन्नं । रेणु-कण-गुंडियं पि हु कणगं किं झामलं होइ ॥ तो राग-वसोराया निय-पुरिसं पेसए तमाणेउं । गंतूण भणइ पुरिसो मंदिर-दार-ट्ठियं तारं ॥ पुव्वजिय-पुन्न-दुमो फलिओ तुह अन्ज जं तुमं राया। जाय-गरुयाणुर ओ हक्कारइ ता लहुं चलसु॥ एवं सोउं वजाहय व्व हिययंमि दूमिया तारा । काहामि सील-रक्खं कहं ति चिंताउरा जाया ॥ अह तत्थ संखचूडो पत्तो सा ठवइ तं निउच्छंगे। चुंबइ तस्स मुहे खिवइ भोयणं खप्परे गहिउँ ॥
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