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कुमारपालप्रतिबोधे
सयमेव तओ तारा चउहहे विक्किणे कुसुमाई । दक्खत्तणेण तीए लाभो सव्युत्तमो होइ ॥ अन्न- दिणे सा दिट्ठा तन्नयर-निवेण वइरसीहेण । एसा किमागया सुर-वहु त्ति सो विम्हयं पत्तो ॥ सोराय - वाडिया वच्चइ निचं पि तेण मग्गेण । पेच्छंतो स-विलासं परिहास - परो तमालवइ ॥ अन्नंमि दिणे काउं ओसहि-तिलएण सा पुरिस- रूवं । कुसुमाई जाव विक्किणइ ताव पत्तो निवो तत्थ ॥ तं जंपइ रे मालिय ! तुह भज्जा किं न दीसए अज्ज । ती जरो किमंगे लग्गो हसिऊण सा भणइ ॥ तीए जरो न लग्गो लग्गो तुह चेव देव ! काम जरो । बीय-दिणे पुण रन्ना सहाव-रूवेण सा दिट्ठा ॥ परिहासं कुणमाणो राया ताराइ जंपिओ एवं । नत्थि इमेसु तिलेसुं तिलं भुल्लोऽसि देव ! दर्द ॥ अह रयणीए राया तं हक्कारेइ पेसिउं पुरिसं । सा कय इत्थी-रूवं चंद पट्ठवह भत्तारं ॥ सो रन्नो वास-हरे नीओ पुरिसेण तं रमणि-रूवं । दहूण मणे चिंत अहो इमीए सु-रूवत्तं ॥ थण-वयण-नयण-कर-चलण - चंगिमा पुण इमीइ सो को वि । थेवो वि हु अन्नाणं जयम्मि जो नत्थि इत्थीणं ॥ तं सेज्जाए ठविडं विन्न - कुसुमंग-राग- तंबोलो । पयडिय - दढाणुराओ राया वज्जरिउमारडो | जं तुह विरहे दुक्खानलेण संतावियं मह सरीरं । निय-संगमेण अमओवमेण निव्ववसु तं झत्ति ॥ इय जंपिऊण लग्गो कंठे चंदस्स सो रमणि-रूवं । मुत्तूण भइ एवं नरिंद ! किमजुत्तमादत्तं ॥ राया पुरिसं दट्टण लजिओ हा किमिदयाल मिणं । मन्ने महा-सईए तीए सील - प्पभावेण ॥ काउं इत्थी - रूवो निय भत्ता पेसिओ अहो ! धन्ना एसा मइ पत्ते वि पत्थिवे जा न अणुरत्ता ॥
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