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प्रस्तावः]
शीले ताराकथानकम् ।
सुह-दुक्ख-संविभागं भणंति नेहस्स वि सरूवं ॥ वच्चइ पहम्मि चंदो अगणिय-तण्हा-छुहा-पमुह-वसणो । अवमाणमेव मन्नंति माणिणो गुरुयरं दुक्खं ॥ पत्तो य तामलितिं कमेण सो बउल-मालिएण तहिं । भद्दागिइ त्ति दटुं तुट्टेण नियं गिहं नीओ॥ पइणो पुत्तस्स य देमि भोयणं जं मणुन्नमेएसिं । इय चिंतंती तारा न देह-दुक्खं गणइ किं पि ॥ रंधइ खंडइ पीसइ दलइ जलं वहइ कुणइ सव्वं पि । सा पर-घरेसु कम्मं अहो सुघरिणित्तमेईए॥ तं दुटुं नयर-जणो भणइ अहो ! दुहु विलसियं विहिणो। जं एरिसीइ रमणीइ एरिसी दुइसा विहिया ॥ . अन्न-दिणे सा दिट्ठा कह वि परिव्वाइगाइ एक्काए। ता तीए संलत्तं भद्दे ! निसुणेसु मह वयणं॥ कस्स वि हवेज दुइ त्ति सा इमीए उवेक्खिया भणइ । नाहमजुत्तं वोच्छं ता तारा सुणइ सा भणइ॥ भद्दे ! मं उवलक्खसि तारा अक्खेइ नोवलक्खेमि । पव्वाइया पयंपइ पुव्वं वाणारसि-पुरीए । जेमाविया तए जा पिउणा सह बंभणी नियय-भवणे । साहं साहइ तारा किमवत्था एरिसी तुज्झ॥ सा भणइ मए गहियं वयं अओ होउ मे दसा एसा।
हा कटुं जं जाया तुह एसा दुद्दसा भद्दे ! ॥ तहा
अस्थि मह ओसहि-दुगं गुरु-दिन्नं तत्थ निम्मिए तिलए। एकाए थी पुरिसो बीयाए सो हवइ इत्थी॥ तं सील-रक्खण-कए गिण्ह तुमं गिण्हए तओ तारा। अह मालिएण दट्टण दुत्थिओ जंपिओ चंदो ॥ किं न कुणसि ववसायं सिरीइ मूलं भणंति जं विबुहा । चंदो भणइ न वङ्क विहव-विहणाण ववसाओ॥ तो मालिएण वुत्तं विक्किण कुसुमाई मज्झ भागेण । चंदो तं कुणइ परं पावइ न तहाविहं लाहं ॥
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