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प्रस्तावः]
शीले ताराकथानकम् ।
२३७
वसण-दसा पत्ता वि हु जे परिपालंति सीलमकलंक ।
ते उभय-भवुन्भव-सुक्ख-भागिणो हुंति तार व्व ॥ तं जहा
अत्थि सयलामरहिया नयरी वाणारसी सुर-पुरि व्व । चोजं वसंति जीए न के वि लोया अवजकरा ॥ सेट्ठी पुरंदरो तत्थ अत्थि अत्थाह-अत्थ-वित्थारो। सुंदर-देहा सुर-सुंदरि व्व से सुंदरी भजा ॥ कय-सयल-जणाणंदो चंदो चंदु व्व नंदणो तेसिं । रच्छुग-वणिणो धूया तारा नामेण से घरिणी ॥ तीए पुरओ स्वेण रेहए किंकरि व्व काम-पिया। पर-पुरिस-निवित्ति-वयं पडिवन्नं तीऍ गुरुपासे ॥ चंद-पियाए ताराइ रोहिणीए बुहो व्व अत्थि सुओ। पल्लविय-लोय-लोयण-परिओसो संखचूडो त्ति ॥ अन्न-दिणे चउहहे दिहा चंदेण कन्नगा एक्का। दाऊण तणं सीसे निय-पिउणा विक्किणिजंती ॥ अचंत-मणहरा का इम त्ति चंदेण पुच्छिया मित्ता। ते बिंति दरिद्द-दिओ एवं विक्किणइ निय-धूयं ॥ मित्ता भणंति घित्तुं घरिणी किजउ इमा सुरूव त्ति ॥ तेणुत्तं हरिणच्छी रच्छुग-धूय त्ति मह घरिणी ॥ ताहं किमयमिच्छामि बंभणिं किं तु इणमजुत्तं ति। देमि दयाए मुल्लं इमस्स जंपति तो मित्ता॥ पवणुहुय-धय-चंचलह विहवह एत्तिउ सार। वसण-महन्नव-निवडियह जं कीरइ उवयारु॥ अकय-व्वओ न सोहइ विहवो विहवो व्व अंगणा-निवहो । कत्थ वि अपत्त-भोगो सुवन्न-तारुनओ जइ वि॥ तो पुच्छिओ इमीए मुल्लं किं बंभणो भणइ लक्खं । मुहयाइ गिण्ह लक्खं करिज मा पुण वि तुममेवं ॥ इय जंपिऊण चंदो दियस्स दिणार-लक्खमप्पेइ । जंपइ भट्टो दुण्हं पि भोयणं देसु अम्ह गिहे ॥ लक्खं लहिलं पि अहो सो मग्गइ भोयणं विगय-लजो।
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