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प्रस्तावः] शीलव्रतपालने शीलवतीदृष्टान्तः ।
२२५ अजियसेणो वि दिट्ठो सीलमईए चिंताउरो । पुच्छिओ चिंताए कारणं । तेण वुत्तं-गंतव्वं मए रन्ना समं । तुम घेत्तूण वचंतस्स मे गिहं सुन्नं । तहा जह वि तुमं अक्खलिय-सीला तहवि एगागिणीं गिहे मुत्तूण वच्चंतस्स मे न मण-निव्वुई । अओ चिंताउरोम्हि । तीए वुत्तं
जलणो वि होइ सिसिरो रवी वि उग्गमइ पच्छिम-दिसाए । मेरु-सिहरं पि कंपइ उच्छलइ धरणि-वीदं पि॥ जायइ पवणो वि थिरो मिल्लइ जलही वि नियय-मजायं । तहवि मह सील-भंगं सको वि न सकए काउं॥ तहवि तुमं मण-निव्वुइ-हेउं गिलसु इमं कुसुम-मालं। मह सील-पभावेणं अमिलाण चिय इमा ठाही ॥ जइ पुण मिलाइ तो सील-खंडणं निम्मियं ति जपती। सा खिवइ निय-करेहिं पइणो कंठे कुसुम-मालं ॥ तो अजियसेण-मंती सीलमई मंदिरंमि मुत्तूण । निव्वुय-चित्तो चलिओ सह अरिमद्दण-नरिंदेण ॥ अणवरय-पयाणेहिं तम्मि पएसंमि नरवई पत्तो। जत्थ न हवंति कुसुमाई जाइ-सयवत्तियाईणि ॥ दट्टण कुसुम-मालं अमिलाणं अजियसेण-कंटुंमि। तं भणइ निवो कत्तो तुह अमिलाणा कुसुम-माला ॥ अच्छरियमिणं गरुयं मए गवेसावियाई सव्वत्थ । निय-पुरिसे पट्टविउं तहवि न पत्ताई कुसुमाइं॥ जंपइ मंती जह मह पियाइ पत्थाण-वासरे खित्ता। स चिय माला न मिलाइ तीइ सील-प्पभावेण ॥ तं सोउं नरनाहो विम्हिय-हियओ गए अजियसेणे । निय-नम्म-मंति-मण्डलमालवह वियार-सारमिणं ॥ जं अजियसेण-सचिवेण जंपियं तं किमित्थ संभवइ । कामंकुरेण वुत्तं कत्तो सीलं महिलियाणं ॥ ललियंगएण भणियं सच्चं कामंकुरो भणइ एयं । रह-केलिणा पलित्तं देवस्स किमित्थ संदेहो॥ भणियमसोगेणं पट्टवेसु मं देव! जेण सीलमई । वियलिय-सीलं काउं देवस्स हरामि संदेहं ॥
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