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कुमारपालप्रतिबोधे
[तृतीयः
पुत्ताणं पंचसयाई सत्त नत्तुय-सयाइं च ॥ बंभी-पमुहाओ साहुणीओ तह सावया भरह-पमुहा । सुंदरि-पमुहाओ सावियाओ विहिया जिणिंदेण ॥ तो चउरासीईए साहणं उसभसेण-पमुहाणं । कहइ पहू उप्पाओ वओ धुवत्तं च तत्तं ति ॥ तिन्नि-पयाई लहिऊण ते वि विरयंति बारसंगाई । ते चुन्न-खेव-पुत्वं भयवं गणहर-पए ठवह ॥ पुण वि पहू सिंहासणमारुहिउं ताण देइ अणुसहि । पहु-देसणाइ अवही पडिपुन्ना पोरिसी ताव ॥ तो आढय-प्पमाणो अखंड-कलम-कण-निम्मिओ विमलो। सुर-खित्त-सुरहि-वासो निवेसिओ मणिमए थाले । घण-तूर-रवाऊरिय-दियंतरो तरुण-पुरिस-उक्खित्तो । पविसेइ बली भरहेण कारिओ पुव्व-दारेण ॥ दाउं पयाहिणं सो खित्तो पुरओ पहुस्स तिक्खुत्तो। तस्सद्धं संगहियं तियसेहिं नहंगणे चेव ॥ अद्धद्ध धरणि-गयं भरहो गिण्हेइ सेसमियर-जणो। लोयस्स सव्व-रोगा पसमंति बलि-प्पभावेण ॥ अह उढिऊण भयवं उत्तर-दारेण निग्गओ तत्तो। वीसमइ देवछंदे सुवन्न-पायार-मज्झ-गए ॥ तो कहइ उसभसेणो धम्मं पहु-पायवीढ-विणिविहो। तम्मि कहणाउ विरए निय-निय-ठाणे जणा जंति ॥ अह भविय-वग्ग-पडिबोहणत्थमन्नत्थ विहरिओ भयवं । मोह-तमोह-निरोहं सहस्सरस्सि व्व कुणमाणो ॥ भरहो गंतूण गिहं चकं पूएइ तं पि निक्खमइ । पुव्वाभिमुहं चिट्ठइ दिणे दिणे जोयणं गंतुं ॥ चक्काणुमग्ग-लग्गो चउरंग-बलेण वचए चक्की । साहइ सयलं भरहं वास-सहस्सेहिं सट्टीए ॥ पत्तो स-गिहं भरहो तणुयंगिं गिंभ-काल-सरियं व । दहण सुंदरि रोस-परवसो पुच्छए पुरिसे॥ किं मज्झ नत्थि अन्जवि जं एसा दुब्बला मिलाण-मुही।
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