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प्रस्ताव: ]
राजपिण्डे भरतचक्रि - कथा |
कत्थ च चक्कं संहार-कारणं पाणि-चक्कस्स ॥
fast ! मए अजुत्तं विमरिसियं अहह ! मोह - विवसोऽहं । जं कप्प - हुम-धत्तूरयाण चिंतेमि तुहत्तं ॥
एवं फुरिय-विवेगो करिम्मि आरोविऊण मरुदेविं । चलिओ चउरंग-बलोह - रुड- इ-विस्संभरो भरहो ॥ अह भरहो मरुदेविं जंपर दहुं समोसरण - रिद्धिं । अम्मो ! तए रुयंतीइ जंपियं मह पुरो एवं ॥ मह पुत्तो रज्ज - सुहं तणं व मुत्तुं अकिंचणो जाओ । सीउन्ह-वाय तन्हा - छुहा- हओ भमइ एगागी ॥ वृत्ता मए पुण तुमं मणं पि मा अंब ! खेयमुव्वहसु । अन्नस्स तारिसी नहि सुयस्स ते जारिसी रिद्धी ॥ आसी न पच्चओ ते मह वयणे अंब ! एत्तियं कालं । संपइ पेच्छ सुरेहिं विहियं पहुणो समोसरणं ॥ पहु-वंदनारायाणं सुव्वइ तियसाण जयजयारावो । पेच्छ सुरा पहु-पुरओ थुणंति नच्चंति गायंति ॥ जा देवीए जाया नीली नयणेसु सामि - सोएन । सा भरह-वण-सवणे आणंद-जलेण अवणीया ॥ ता पेच्छइ मरुदेवी सुयस्स तित्थयर-रिडिमुद्दामं । तद्दंसण - हरिस-वसेण झत्ति सा तम्मया जाया ॥ तत्तो अउव्व-करण - कमेण सा खवग - सेणिमारूढा । कम्माई अट्ट जुगवं निविडं केवलं लहइ ॥ सा कर - खंध गय च्चिय सिद्धा अंतगड - केवलो जाया । तद्देहमचिणं वित्तं तियसेहिं खीरोए ॥ हरिस-विसाएहिँ जुओ अन्भच्छायायवेहिँ सरओ व्व । भरहो विमुक्क पत्थव चिंधो पविसह समोसरणे ॥ च - विह-सुर परियरियं ति-पयाहिण-पुत्र्वयं जिणं नमिडं । निय ठाणंमि निविट्ठो भरहो पहु-देसणं सुणइ || दुलहमिणं मणुयत्तं विवाग-दुक्खावहं विसय-सुक्खं । जीयं चलं च मुणिउं मुणि धम्मं कुणह मुक्व कए ॥ तं सोडं पडिवजंति संजमं उसभसेण-पहाणं ।
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