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कुमारपालप्रतिबोधे
[तृतीयः पुणभू । तं दट्टण कयउन्नेण भणिओ अभओ, एसा सा मे महिला । अभएण वुत्तं किं इमं लहरिं दट्ठण भणसि एवं । कयउन्नेण वुत्तं-जह न पत्तियसि ता पेच्छसु । पिउ त्ति चडिया उच्छंगे जक्खस्स दारगा। कयउन्नो त्ति मन्नंतीए तीएय चंदोदए समुहु व्व समुल्लसिओ हरिसो। सुरुग्गमे कमलाई व वियसियाई लोयणाई । घणागमे कयंब-कुसुमं व समुग्घुसियं सरीरं । पओसे गयणं व तारएहिं मंडियं निडालं सेय-जल-बिंदूहिं । पवण-संसग्गे वण-लयाए व्व सव्वंगं वियंभिओ कंपो। निचलत्तणओ तं जक्खो त्ति जाणिऊण जंपिउं पवत्ता पुणभू।
पिय-रूवं जक्ख ! पयासिऊण आणंदियम्हि ताव तए । जइ कुणसि चिंतियं ता दंससु तं मज्झ पञ्चक्खं ॥ तो पुजिऊण जक्वं पच्छिम-दारेण जाव नीहरइ । ता नियइ गवक्ख-गयं कयउन्नयं हरिस-पडिपुन्नं ॥ तेहिं चेव पएहिं सा चिट्ठइ तो भणेइ कयउन्नो । एहि मयच्छि ! किमजवि विलंबसे सा गया पासे ॥ अह पत्ता कामलया जक्खं दटूण विम्हिया भणइ । जाया बारस-वरिमा मह पिययम-विरह-विहुराए । मरणम्मि धुवो विरहो जीवंताणं तु घडइ जोगो वि। इय चिंतिउंठियाहं पइव्वयाए वयं घित्तुं ॥ अज रयणी-विरामे दिट्ठो पिय-मेलगो मए सुविणो । मह आगच्छंतीए जाया सुह-सूयगा सउणा ॥ तह वामा अच्छि-भुया फुरंति ता मज्झ अन्ज पिय-जोगो । तुह जक्ख ! पसाएणं नृणं होहि त्ति तकेमि ॥ तइ पिय-सरिसे दिवे हरिसो जो मज्झ सो भविस्संतं । पिययम-जोगं सूरुग्गमं व अरुणोदओ कहइ ॥ तो पणमिऊण जक्वं पच्छिम-दारेण नीहरंती सा। पेच्छइ अभएण समं महुणा मयणं व कयउन्नं ॥ तो हरिस-निम्भराओ दुन्नि वि कयउन्नएण नीयाओ। निय-मंदिरम्मि ताओ नियनिय-घरसार-जुत्ताओ॥ इय चउहिं सह पियाहिं तिवग्ग-सारं सुहं अणुहवंतो।
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