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कुमारपालप्रतिबोधे
दाउ इमस्स भिक्खं करेमि मणुयत्तणं सहलं ॥ इय चिंतिउं ति भागं देह इमो पायसस्स तुट्ठ- मणो । थेवमिणं ति विचिंतिय दुइय-ति-भागं पयच्छेइ ॥ मा अत्रेण विणस्स इमं ति परिभाविऊण पुण एसो । देइ तइयं ति-भागं भोग - फलं बंधए कम्मं ॥ तस्स निसन्नस्स पुणो अन्नं जणणीए पायसं दिनं । गिद्धि-वसेण अणं भुत्तं परिणइ-अमाणेण ॥ तम्मि दिने वलयं इमस्स बाहिं गयस्स संजायं । रयणीए अजिन्नेणं विसूइयाए मओ एसो ॥ मगह - विसयावयंसे रायगिहे वर- पुरे समुप्पन्नो । सो सेट्ठि - घणावह - भारियाइ भद्दाइ गन्भम्मि ॥ काल- कमेण जाओ पुत्तो बत्तीस - लक्खणाणुगओ । परितुट्ठ- मणो सेट्टी करेइ जम्मूसवं तस्स ॥ कयन्नु त्ति जणेण भणिओ सो जो गिहे धणडुंमि । जाओ इमो त्ति विहियं तो कयन्नो त्ति से नामं ॥ चंदो व्व सुक्क पक्खे दिणे दिणे जणिय-जण-मणाणंदो । पाव वुद्धिं एसो सयणाण मणोरहेहिं समं ॥ समयम्मि कलायरियस्स अप्पिओ कारिओ कला - गहणं । सो तरुणि- नयण - छप्पय-कमलवणं जोव्वणं पत्तो ॥ कणयावदाय- देहं निव्वत्तिय - तियस तरुणि-संदेह | परिणाविओ गुरूहिं रूवमई नाम इब्भ-सुयं ॥ तह वि कलभास - परो पसत्थ- सत्थत्थ- संथव-विहत्थो । रमणीस मणं पि मणं मुणि व्व न करेइ कयन्नो || तो भणिओ भद्दाए सिट्ठी तह कुणसु मंज्झ जह वच्छो । सेवेइ विसय- सुक्खं अह वृत्तं सेट्ठिणा एवं ॥ आहार-भय-परिग्गह- मेहुण-सन्नाओ अणुवदिट्ठाओ । गिति सव्व-सत्ता मुद्धे ! किं तदुवएसेण ॥ पुणरुत्तं भद्दाए भणिजमाणेण सिट्टिणा पुन्तो । विसयासत्तिनिमित्तं खित्तो दुल्ललिय-गोट्ठीए ॥
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