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प्रस्तावः]
सान्तरदाने कृतपुण्यकथानकम् । ते अन्न-भवे पावंति सुक्खमच्छिन्नमाजम्मं ॥ जेसिं पुण दिताणं नराण दाणंमि अंतरं होइ ।
कयउन्नउ व्व सुक्खं निरंतरं ते न पावंति ॥ तं जहा
अस्थि पुरी सावत्थी जत्थ वियंभंत-सुरयगा तुंगा। कणयमया पासाया सुमेरु-पुत्त व्व रेहति ॥ . तत्थ गुण-संगओ संगउ त्ति सिट्ठी महा-धणो आसि । से बंधुल त्ति भजा रमणो त्ति मणोहरो पुत्तो ॥ पुव्व-कय-कम्म-परिणाम-दोसओ तस्स विहडिओ विहवो । जम्हा न पडिखलिजइ सुरासुरेहिं पि पुव्व-कयं ॥ कालेण मओ सिट्टी अनिव्वहता य बंधुला तत्थ । सुलह-जलिंधण-धन्नंमि सालिसीसे गया गामे ॥ अक्खिय-निय-वुत्तंता गामीण-जणेहिं अब्भुवगया सा। विहिओ य वच्छ-वालो से पुत्तो अप्पिउं वच्छे ॥ सो दाण-व्वसणी देइ दारगाईण लहइ जं किं पि । नहि अत्थि नत्थि चिंता पयइ-उदाराण संभवइ ॥ अह मास-खमग-साहू इमस्स दिहिपहमागओ बाहिं । जाया य तम्मि भत्ती तवेण रंजिजइन को वा ॥ अन्नम्मि वासरे ऊसवो त्ति लोगेण पायसं रद्धं । तं जेमंते डिंभे द8 रमणो भणइ जणणिं ॥ वियरसु ममा वि पायसमिमा वि नथि त्ति निम्भरा रुयइ । संपन्न-दयाहिं पाडिवेसियत्थीहिं सा भणिया ॥ मा रुयसु पायसं रंधिऊण रमणस्स देसु सिग्धं ति। तीसे समप्पियाइं च खीर-तंदुल-गुल-घयाई ॥ रद्धं च पायसं तीइ दारओ भोयणत्थमुवविट्ठो। घय-गुल-पायस-भरियं तस्स पुरो भायणं ठविलं॥ अह बंधुला पविट्ठा घर-मज्झे इत्थ अवसरे पत्तो। धम्मु व्व मुत्तिमंतो सो भिक्खत्थं खमग-साहू ॥ चिंतामणी मह-करे चडिओ जं आगओ मुणी गेहं ।
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