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कुमारपालप्रतिबोधे
[ तृतीयः
सो चेव लहइ एयं जस्सेसा कन्नगा देह ॥ को गिण्हउ त्ति वुत्ता नरवाणा चंदणा भणइ एवं । गिण्हओ सेट्ठी एसो पिया हि मे पालण-गुणेण ॥ तत्तो धणावहेणं वसुहारा सहरिसेण संगहिया । वजरइ सयाणीयं पुणोवि सोहम्म-सुर-नाहो ॥ वीरस्स समुप्पन्ने केवल-नाणे इमा चरम-देहा । विसय-विणियत्त-चित्ता बाला होही पढम-सीसा ॥ ता रक्ख इमं जत्तेण जाव वीरस्स केवलुप्पत्ती। इय जंपिऊण सक्को पत्तो सोहम्म-सुर-लोयं ॥ कन्नतेउर-मज्झे नेइ तयं चंदणं सयाणीओ। सा तत्थ ठिया पहुणो चिंतंती केवलुप्पत्तिं ॥ मूला अणथ-मूलं निच्छूढा सेटिणा निय-गिहाओ। रुद्दज्झाणोधगया सा वि हु मरि गया नरयं ॥ गिण्हइ दिक्खं पासंमि सामिणो केवले समुप्पन्ने । सव्व-समणीण होउं पवत्तिणी चंदणा सिद्धा॥
इति दाने चंदना-कथा । जो चारित्त-निहीणं निम्मल-तव-नियम-नियमिय-विहीणं । साहूण देइ दाणं सो सुक्खं लहइ धन्नो व्व ॥ तं जहा
अत्थि नयरं पइट्ट पगिट्ट-सर-वावि-कूव-कय-सोहं । अब्भंलिह-सुर-मंदिर-मिस-दंसिय-सग्ग-सोवाणं ॥ तम्मि निवो जियसत्तू नय-विक्कम-चाय-पमुह-गुण-कलिओ। जय-लच्छी सच्छंदं रमिया भुय-तरु-तले जस्स ॥ धणवंतमासि पुव्वं संजायं निद्धणं विहि-वसेण ।। लजंतमन्न-नयराओ आगयं तत्थ कुलमेकं ॥ पयईए विणीओ दाण-लालसो तस्स दारओ वरुणो । जण-संतियाइ वित्तीइ पालए वच्छरुवाई ॥ अन्न-दिणे संजाओ महसवो तत्थ तो नयर-लोगो । विविहाई भोयणाई वेत्तुं उजाणमणुपत्तो ॥
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