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कुमारपालप्रतिबोधे
[द्वितीयः
जइ सयणेसु सिणेहो मुक्को संजम-कए तए वच्छ !। ता किं सो परिचत्तो गुरूसु वि जमित्थ पत्तोसि ॥ इय विलविऊण बहुयं भद्दा सिप्पा-नई-तडे तस्स । कुणइ परलोय-किचं संखुडरणं बहूओ वि ॥ मुत्तुं एकं गेहम्मि गुम्विणिं वहुयमन्न-वहु-सहिया । भद्दा गिण्हइ दिक्खं भव-दुक्ख-समुक्खणण-दक्खं ॥ कारवियं देवकुलं अवंतिसुकुमाल-मरण-ठाणम्मि। तप्पडिम-सणाहं गुम्विणीइ जाएण पुत्तेण ॥ लोयम्मि 'महाकालोत्ति तं पसिद्ध अवंति-अवयंसं । अन्ज वि चिट्ठइ सिहरग्ग-रुद्ध-रवि-रह-तुरय-मग्गं ॥ भयवं अजसुहत्थी सूरिपए ठाविऊण वरसीसं। पजंत कयाणसणो मुत्तुं देहं गओ सग्गं ॥
इति गुरु-प्रभावे सम्प्रतिराज-कथा ।
इय संपइ-निव-चरियं निसामियं हेमसूरि-पहु-पासे ।
राया कुमारवालो तहेव कारवइ रहजत्तं ॥ तं जहानचंत-रमणि-चक्कं विसाल-बलि-थाल-संकुलं राया। कुणइ कुमार-विहारे सासय-अठ्ठाहिया-महिमं ॥ नट-कम्ममह वि दिणाई सयमेव जिणवरं पहविउं । गुरु-हेमचंद-पुरओ कयंजली चिट्ठइ नरिंदो॥ अट्ठम-दिणम्मि चित्तस्स पुण्णिमाए चउत्थ-पहरम्मि । नीहरइ जिण-रहो रवि-रहो व्व आसाओ पयर्डतो॥ ण्हविय-विलित्तं कुसुमोह-अच्चियं तत्थ पासजिण-पडिमं । कुमर-विहार-दुवारे महायणो ठवह रिडीए ॥ तूर-रव-भरिय-भवणो स-रहस-नचंत-चारु-तरुणि-गणो। सामंत-मंति-सहिओ वच्चइ निव-मंदिरम्मि रहो ॥ राया रहत्थ-पडिमं पहसुय-कणय-भूसणाईहिं । सयमेव अच्चि कारवेइ विविहाइं नहाई ॥ तत्थ गमिऊण रयणिं नीहरिओ सीह-वार-बाहिमि ।
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