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प्रस्तावः]
गुरुसेवायां सम्प्रतिनृपकथा । अण्ण-समए सुहत्थी उज्जेणीए मुणीहिं सह पत्तो। भद्दाए सावियाए घरे ठिओ जाणसालाए॥ तत्थ कया वि पओसे अजसुहत्थी पसत्थ-सद्देण । परियहिउमाढत्तो नलिणीगुम्मं ति अज्झयणं ॥ घर-सत्तम-भूमीए भद्दा-पुत्तो अवंतिसुकुमालो। बत्तीसाहिं वहहिं सह विलसंतो तया अस्थि ॥ सो तस्स सवण-हेउं मुत्तुं पासायमागओ वसहिं । कत्थ मए दिट्टमिणं ति चिंतिउं सरइ पुव्व-भवं ॥ नमिऊण भणइ सूरिं अहं खु भद्दा-सुओ पुरा तियसो । नलिणीगुम्मे हुँतो जाइस्सरणेण जाणामि ॥ तो मज्झ देहि दिक्खं जेण पुणो तत्थ होमि तियसोऽहं । तेण वि सयणानापुच्छिय त्ति लोओ सयं विहिओ ॥ गुरुणा वि दिक्खिओ सो मा होउ सयं गिहीय-लिंगो त्ति । भयवं ! न चिरं काउं पव्वजमहं समत्थो त्ति ॥ भणिउं गओ मसाणे कोमल-कम-तल-गलंत-रुहिरोहो। विहियाणसणो चिट्ठइ कथारि-कुडंग-मज्झ-गओ ॥ लोहिय-गंधेण सिवा सिसु-परियरिया समागया तत्थ । सा खाइ पायमेकं सिसूणि बीयं पढम-पहरे ॥ बीए ऊरू तइयम्मि पोहमेवं गओ समाहि-जुओ। सो तिअसो उपन्नो नलिणीगुम्मे विमाणम्मि ॥ तियसेहिं कुसुम-बुट्ठी मुक्का एसो महाणुभावो त्ति । पुच्छंति गुरुं तब्भारियाओ तमपेच्छमाणीओ॥ उवओगेण सुहत्थी मुणिऊण कहेइ तस्स वुत्तंतं । सोग-भर-निन्भराओ ताओ वि कहंति भद्दाए ॥ भद्दा वहूहिं सहिया गया मसाणे पहाय-समयम्मि । दडे नेरइय-दिसाए कट्टियं नंदण-सरीरं ॥ उच्चसरेण रुयंती विलवइ एवं किमेकवारं पि। गहिय-व्वएण न तए अलंकियं वच्छ ! मह गेहं ॥ पुत्तय ! का वि भविस्सइ सा कल्लाणी अओ परं रयणी। सुविणे वि तुमं जा दंसिऊण जीवाविही अम्हे ॥
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