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कुमारपालप्रतिबोधे
[द्वितीयः
वलिऊण कूणिएणं नयरी भग्गा समग्गावि ॥ घेत्तुं जिणिंद-पडिमं पडिओ वावीए चेडय-नरिंदो। धरणो पडिच्छिउँ करयलेण तं नेह निय-नयरिं ॥ सो तत्थ अरत्त-अदुट्ट-माणसो मासमणसणं कुणइ । मरिऊण समुप्पजइ सग्गे सव्वुत्तमो तियसो॥ इय कूलवाल-समणो गुरु-पडिकूलो तव-क्खयं पत्तो। तत्तो निउण-नरेणं गुरु-भत्ति-परेण होयव्वं ॥
इति गुरु-विराधनायां कूलवाल-कथा ॥
चिंतामणि-कप्पहुम-कामदुहाईणि दिव्व-वत्थूणि । जण-वंछियत्थ-करणे न गुरूणि गुरु-प्पसायाओ॥ जो पेच्छिऊण पावंति पाणिणो मणुय-तियस-सिद्धि-सुहं । करुणा-कुल-भवणाणं ताण गुरूणं कुणह सेवं ॥ दमगो वि पुव्व-जम्मे जं महिवा-निवह-नमिय-पय-कमलो। जाओ संपइ-राओ तं गुरु-चलणाण माहप्पं ॥ रन्ना वुत्तं-भयवं ! कह दमगो संपई निवो जाओ। भणइ गुरू-सुण नरवर ! संदेहं जेण अवणेमि ॥ गुरु-थूलभद्द-सीसा अज-महागिरि-सुहत्थि-नामाणो। भुवणे चिरं विहरिया दस-पुव्व-धरा जग-प्पहाणा ॥ अह निप्पाइय-सीसो महागिरी नियय-गच्छमप्पेइ । अज-सुहत्थिस्स सयं जिणकप्पन्भास-कय-चित्तो॥ जिणकप्पे वुच्छिन्ने वि गच्छ-निस्साइ कुणइ तं एसो। पाडलिउत्तं पत्ता कयाइ ते दो वि विहरंता॥ तत्थ वसुभूइ-सिट्टी अज-सुहत्थिस्स देसणं सुणिउं । जीवाजीवाइ-पयत्थ-जाणगो सावगो जाओ। अज-सुहत्थि-पणीयं धम्म सयणाण कहइ वसुभूई । धम्मायरिएण विणा तं पडिवजंति तहवि न ते ॥ वसुभूई भणइ गुरुं न सक्किया बोहिउं मए सयणा । तो मह गिहमागंतुं ते पडिबोहसु तुमं नाह ! ॥
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