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प्रस्तावः]
गुरुविराधनायां कूलवालकथा । ता ताहिंतो पवरं मं भयमु तवेण पज्जतं ॥ अह परम-पयं वंच्छसि ता केण वि मुद्ध! विप्पलद्धोसि । का तत्थ सुहासा जत्थ नत्थि घोर-त्थणी तरुणी ॥ ता मुत्तूण अरन्नं सपाव-सावय-समूह-संकिण्णं । वच्चामो रह-रमणीय-रमणि-गण-मणहरं नयरं ॥ जम्हा तुज्झ वियोगं खणं पि सहिउं अहं न सक्केमि । मुंच तवं सेवामो विसय-सुहं जोव्वणं जाव ॥ इय वयणाई सोऊण तीइ परिचत्त-धीरिमो एसो। मिल्लह वयाभिमाणं महिलाहिं न गंजिओ को वा ॥ चित्त-गयाओ वि चित्तं हरिणच्छीओ हरंति अच्चंतं । किं पुण विलास-पेसल-चड्डु-कम्म-पयासण-पराओ॥ . अह परितुट्ठ-मणा सा तेण समं कूणियस्स पासम्मि। गंतुं विहिय-पणामा कयंजली विन्नवइ एवं ॥ देव ! मह जीविएसो एसो सो कूलवालगो समणो । जं इमिणा कायव्वं इहि तं आइसउ देवो ॥ भणइ निवो-भद्द ! इमा जह भजइ पुरवरी तह करेसु। तं पडिवजइ समणो तो कुणइ तिदंडिणो वेसं ॥ पविसइ पुरीइ मज्झे मुणिसुव्वय-सामिणो नियइ थूभं । थूभ-पहावेण पुरी भजइ न धुवं ति तक्केइ ॥ ता तह करेमि थूभं अवणिंति जहा जण त्ति चिंतेइ। फिट्टिहिइ नयरि-रोहो कहं ति पुच्छंति तं लोगा ॥ भणइ इमो जइ थूभं अवणेह तओ अवेइ पर-चक्कं। अन्नह नयरी-रोहो न कहं पि हु फिटिही एसो॥ अवणिजंते थूभे ओसरियव्वं तए स-सिन्नेण । इय संकेयं सो कूणिएण सह कुणइ कूड-मई ॥ लोगा भणंति को इत्थ पञ्चओ तो पयंपए समणो । ओसरिही पर-चक्कं थूभे थेवे वि अवणीए । एसो खु पच्चओ इह, तो लोगा थूभ-सिहरमवणिंति । पर-चकमोसरंतं पिच्छंति य तम्मि समयम्मि ॥ अह जाय-पच्चया तं थूभं अवणिंति सव्वमवि मूढा ।
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